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बाल वनिता महिला आश्रम.

खगोलशास्त्र में तारों की श्रेणियाँ उनसे आने वाली रोशनी के वर्णक्रम (स्पॅकट्रम) के आधार पर किया जाता है। इस वर्णक्रम से यह ज़ाहिर हो जाता है कि तारे का तापमान क्या है और उसके अन्दर कौन से रासायनिक तत्व मौजूद हैं। अधिकतर तारों कि वर्णक्रम पर आधारित श्रेणियों को अंग्रेज़ी के O, B, A, F, G, K और M अक्षर नाम के रूप में दिए गए हैं-

  • O (ओ) - इन्हें नीले तारे कहा जाता है
  • B (बी) - यह "नीले-सफ़ेद" तारे होते हैं
  • A (ए) - यह "सफ़ेद" तारे होते हैं
  • F (ऍफ़) - यह "पीले-सफ़ेद" तारे होते हैं
  • G (जी) - यह "पीले" तारे होते हैं
  • K (के) - यह "नारंगी" तारे होते हैं
  • M (ऍम) - यह "लाल" तारे होते हैं
अभिजीत (वेगा) एक A श्रेणी का तारा है जो सफ़ेद या सफ़ेद-नीले लगते हैं - उसके दाएँ पर हमारा सूरज है जो G श्रेणी का पीला या पीला-नारंगी लगने वाला तारा है

ध्यान रहे के किसी दर्शक को इन तारों के रंग इनकी श्रेणी के बताए गए रंगों से अलग प्रतीत हो सकते हैं। तारों के श्रेणीकरण के लिए इन अक्षरों के साथ एक शून्य से नौ तक का अंक भी जोड़ा जाता है जो दो अक्षरों के अंतराल में तारे का स्थान बताता है। जैसे कि "A5" का स्थान "A0" और "F0" के ठीक बीच में है। इन अक्षर और अंक के पीछे एक रोमन अंक भी जोड़ा जाता है जो I, II, III, IV या V होता है (यानि एक से पाँच के बीच का रोमन अंक होता है)। अगर कोई तारा महादानव हो तो उसे I का रोमन अंक मिलता है। III का मतलब है के तारा एक दानव तारा है और V का मतलब है के यह एक बौना तारा है (जिन्हें मुख्य अनुक्रम के तारे भी कहा जाता है)। हमारे सूरज कि श्रेणी G2V है, याही यह एक पीला बौना तारा है जो २ क़दम नारंगी तारे की तरफ़ है। आकाश में सबसे चमकीले तारे, व्याध, की श्रेणी A1V है।

हार्वर्ड वर्णक्रम श्रेणीकरणसंपादित करें

हार्वर्ड विधि बौने तारों को श्रेणियों में बांटने का एक तरीक़ा है। देखा गया है के तारा जितना नीले की तरफ़ होता जाता है उतना ही गरम होता है और उतना ही बड़ा होता है। नीचे दिखाया गया है के अलग श्रेणियों के तारों का क्या तापमान होता है और हमारे सूरज की तुलना में क्या आकार और चमकीलापन होता है। ध्यान रहे के यह सिर्फ़ मुख्य अनुक्रम के तारों (यानि बौने तारों) के लिए जायज़ है -

श्रेणीतापमान
(कैल्विन)
रंगप्रतीत होने वाला रंग[1][2][3]द्रव्यमान[4]
(सूरज का कितना गुना)
अर्धव्यास
(सूरज का गुना)
चमक
(सूरज का गुना)
वर्णक्रम में हाइड्रोजन
की लकीरें
प्रतिशत तारे जो इस
श्रेणी में आते हैं
O≥ 33,000 Kनीलानीला≥ 16 M≥ 6.6 R≥ 30,000 Lकमज़ोर~0.00003%
B10,000–33,000 Kनीला या नीला-सफ़ेदनीला-सफ़ेद2.1–16 M1.8–6.6 R25–30,000 Lमध्यम0.13%
A7,500–10,000 Kसफ़ेदसफ़ेद या सफ़ेद-नीला1.4–2.1 M1.4–1.8 R5–25 Lतगड़ी0.6%
F6,000–7,500 Kपीला-सफ़ेदसफ़ेद1.04–1.4 M1.15–1.4 R1.5–5 Lमध्यम3%
G5,200–6,000 Kपीलापीला-सफ़ेद0.8–1.04 M0.96–1.15 R0.6–1.5 Lकमज़ोर7.6%
K3,700–5,200 Kनारंगीपीला-नारंगी0.45–0.8 M0.7–0.96 R0.08–0.6 Lबहुत कमज़ोर12.1%
M≤ 3,700 Kलालनारंगी-लाल≤ 0.45 M≤ 0.7 R≤ 0.08 Lबहुत कमज़ोर76.45%

१८८० ई॰ के बाद के काल में हार्वर्ड विश्वविद्यालय की वेधशाला (ऑब्ज़रवेटरी) में काम कर रहे वैज्ञानिकों ने सितारों की 'A' से लेकर 'O' तक श्रेणियाँ बनाई। लेकिन १९२० के दशक में भारतीय खगोलवैज्ञानिक मेघनाद साहा ने तारों के वर्णक्रम और उनके सतही तापमान में सम्बन्ध दिखाया। जैसे-जैसे इस क्षेत्र में ज्ञान बढ़ता गया, वैज्ञानिकों ने श्रेणियाँ तापमान के अनुसार बदल दी और जहाँ दो श्रेणियाँ वास्तव में एक ही तापमान के तारों के बारे में थी उन्हें विलय करके एक श्रेणी हटा दी गयी (इसीलिए 'C', 'D' और कुछ और अक्षरों के नाम की श्रेणियाँ नहीं हैं)। साहा के और अन्य वैज्ञानिकों के अध्ययन से यह बात साफ़ हो गई के OBAFGKM दरअसल सतही तापमान की श्रेणियाँ हैं।

यर्कीज़ वर्णक्रम श्रेणीकरणसंपादित करें

तारों की श्रेणियाँ दिखने वाला हर्ट्ज़स्प्रुंग-रसल चित्र

१९४३ में यर्कीज़ वेधशाला में काम कर रहे तीन वैज्ञानिकों ने तारों के वर्णक्रम की एक नयी श्रेणीकरण विधि बनाई। इन वैज्ञानिकों के नाम विलियम विल्सन मॉर्गन, फ़िलिप सी॰ कीनन और ऍडिथ़ कॅल्मॅन थे इसलिए इस प्रणाली को "MKK" विधि भी कहा जाता है जो इनके अंतिम नामों के पहले अंग्रेज़ी अक्षरों को जोड़कर बना है। जहाँ हार्वर्ड श्रेणीकरण सिर्फ़ सतही तापमान के हिसाब से चलता है और केवल बौने तारों के लिए प्रयोग किया जाता है वहाँ यर्कीज़ श्रेणीकरण में सतही तापमान और चमक दोनों का प्रयोग किया जाता है और यह सभी तारों का श्रेणीकरण करते हैं। दानव तारे द्रव्यमान में तो बौने तारों जितना ही होते हैं लेकिन उनका व्यास बौने तारों से ज़्यादा होता है। इसलिए दानव तारों की सतह पर गुरुत्वाकर्षण, गैस का घनत्व और दबाव तीनों बौने तारों से बहुत कम होते हैं। इस अंतर का वर्णक्रम पर काफ़ी असर देखा जा सकता है। बौने तारों के ज़्यादा दबाव की वजह से उनके वर्णक्रम की लक़ीरें "फैल" जाती हैं। चमक के हिसाब से यर्कीज़ विधि में यह श्रेणियाँ हैं -

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

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