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सौर मंडल बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम वर्ष 2022 में भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र खासकर अंतरिक्ष के क्षेत्र में काफी सफलता हासिल की है। पिछले एक साल में भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र तेजी से बदल रहा है। पिछले दिनों इसरो ने भारत के पहले निजी रॉकेट ‘विक्रम-एस’ का श्रीहरिकोटा में सफल प्रक्षेपण किया था। एक और अभियान में इसरो ने हाल में ही पीएसएलवी-सी54 के जरिए ओशनसैट-3 और आठ लघु उपग्रह- भूटानसैट, पिक्सेल का ‘आनंद’, धुव अंतरिक्ष के दो थायबोल्ट और स्पेसफ्लाइट यूएसए के चार एस्ट्रोकास्ट-लॉन्च किए। अक्टूबर महीनें में इसरो ने ब्रिटिश कंपनी वनवेब के लिए 36 कृत्रिम उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके एक बड़ी सफलता हासिल की थी।इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में काफी सफलता हासिल कर लिया है, लेकिन अब समय आ गया है जब इसरो व्यावसायिक सफलता के साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण पर भी ध्यान दे। इसरो को अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी, क्योंकि जैसे-जैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी अंतरिक्ष अन्वेषण बेहद महत्त्वपूर्ण होता जाएगा। इस काम इसके लिए सरकार को इसरो का सालाना बजट भी बढ़ाना पड़ेगा, जो फिलहाल नासा के मुकाबले काफी कम है। भारी विदेशी उपग्रहों को अधिक संख्या में प्रक्षेपित करने के लिए अब हमें पीएसएलवी के साथ-साथ जीएसएलवी रॉकेट का भी उपयोग करना होगा। पीएसएलवी अपनी सटीकता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है, लेकिन ज्यादा भारी उपग्रहों के लिए जीएसएलवी का प्रयोग अब बहुतायत में करना होगा। वैसे तो भारत के पहले सफल चंद्र मिशन और मंगल मिशन के बाद से ही इसरो व्यावसायिक तौर पर काफी सफल रहा है और इसरों के प्रक्षेपण की बेहद कम लागत की वजह से दुनिया भर के कई देश अब इसरो से अपने उपग्रहों की लांचिंग करा रहे हैं। अंतरिक्ष बाजार में भारत के लिए संभावनाएं बढ़ रही है, इसने अमेरिका सहित कई बड़े देशों का एकाधिकार तोड़ा है। पिछले दिनों दुश्मन मिसाइल को हवा में ही नष्ट करनें की क्षमता वाली इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल प्रक्षेपण इस बात का सबूत है कि भारत बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा तंत्र के विकास में भी बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका है। दुश्मन के बैलिस्टिक मिसाइल को हवा में ही ध्वस्त करने के लिए भारत ने सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल बना कर दुनिया के विकसित देशों की नींद उड़ा दी है। एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका ने भारत के उपग्रहों को लांच करने से मन कर दिया था। आज स्थिति ये है कि अमेरिका सहित तमाम देश खुद भारत के साथ व्यावसायिक समझौता करने को इच्छुक हैं। अब पूरी दुनिया में सेटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम की भविष्यवाणी और का दूरसंचार का क्षेत्र बहुत तेज गति से बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं। इसलिए संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में व्यावसायिक तौर पर यहां भारत के लिए बहुत संभावनाएं है। कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की सबसे बड़ी ताकत है जिसकी वजह से स्पेस इंडस्ट्री में आने वाला समय भारत के एकाधिकार का होगा। याद करिए कि नवम्बर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि वह चंद्रयान-2 प्रोजेक्ट में भारत के साथ काम करते हुए इसरो को लैंडर देगा। जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी, लेकिन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई या नहीं दिया। बाद में भारत ने खुद अपना लैंडर-रोवर बनाया। इस बात से यह साफ हो गया कि हमारे वैज्ञानिक किसी के मोहताज नहीं हैं। वे कोई भी मिशन पूरा कर सकते हैं। अब तो अमेरिका भी अपने सैटेलाइट लॉन्चिंग के लिए भारत की लगातार मदद ले रहा है, जो अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का स्पष्ट संकेत है। वास्तव में नियमित रूप से विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण ‘भारत की अंतरिक्ष क्षमता की वैश्विक अभिपुष्टि’ है। अमेरिका की फ्यूट्रान कॉरपोरेशन की एक शोध रिपोर्ट भी बताती है कि अंतरिक्ष जगत के बड़े देशों के बीच का अंतरराष्ट्रीय सहयोग रणनीतिक तौर पर भी सराहनीय है। वास्तव में इस क्षेत्र में किसी के साथ सहयोग या भागीदारी सभी पक्षों के लिए लाभदायक स्थिति है। इससे बड़े पैमाने पर लगने वाले संसाधनों का बंटवारा हो जाता है। खासतौर पर इसमें होने वाले भारी खर्च का। यह भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की वाणिज्यिक प्रतिस्पर्धा की श्रेष्ठता का गवाह भी है। भारत जल्दी ही चंद्रमा पर अपना तीसरा मिशन चंद्रयान-3 लॉन्च कर सकता है। चंद्रयान-3; चंद्रयान-2 का उत्तराधिकारी है और यह चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा। इसरो के अनुसार, चंद्रयान-3 से संबंधित टीम का गठन किया जा चुका है और इस मिशन पर सुचारू रूप से कार्य प्रारंभ है। इसरो के अनुसार चंद्रयान-3 का मुख्य उद्देश्य ऐसी खोज करना है जिससे भारत के साथ ही पूरी मानवता को फायदा होगा। इन परीक्षणों और अनुभवों के आधार पर ही भावी चंद्र अभियानों की तैयारी में जरूरी बड़े बदलाव होंगे। ताकि भविष्य के चंद्र अभियानों की नई टेक्नोलॉजी को बनाने और उन्हें तय करने में मदद मिले। मिशन के मुख्य उद्देश्यों में चंद्रमा पर पानी की मात्रा का अनुमान लगाना, उसके जमीन, उसमें मौजूद खनिजों एवं रसायनों तथा उनके वितरण का अध्ययन करना, उसकी भूकंपीय गतिविधियों का अध्ययन और चंद्रमा के बाहरी वातावरण की ताप-भौतिकी गुणों का विश्लेषण है। कुल मिलाकर चंद्रयान-3 मिशन भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है साथ ही यह मिशन भविष्य में अंतरिक्ष शोध की नई संभावनाओं को भी जन्म देगा। भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में नई सफलताएं हासिल कर विकास को अधिक गति दे सकता है। देश में गरीबी दूर करने और विकसित भारत के सपने को पूरा करने में इसरो काफी मददगार साबित हो सकता है। अब समय आ गया है जब इसरो व्यावसायिक सफलता के साथ-साथ नासा की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध पर भी ज्यादा ध्यान दे, जिससे की भारत के साथ साथ दुनिया को भी नई दिशा मिल सके।

सौर मंडल बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम वर्ष 2022 में भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र खासकर अंतरिक्ष के क्षेत्र में काफी सफलता हासिल की है। पिछले एक साल में भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र तेजी से बदल रहा है।  पिछले दिनों इसरो ने भारत के पहले निजी रॉकेट ‘विक्रम-एस’ का श्रीहरिकोटा में सफल प्रक्षेपण किया था। एक और अभियान में इसरो ने  हाल में ही पीएसएलवी-सी54 के जरिए ओशनसैट-3 और आठ लघु उपग्रह- भूटानसैट, पिक्सेल का ‘आनंद’, धुव अंतरिक्ष के दो थायबोल्ट और स्पेसफ्लाइट यूएसए के चार एस्ट्रोकास्ट-लॉन्च किए। अक्टूबर महीनें में इसरो ने  ब्रिटिश कंपनी वनवेब के लिए 36 कृत्रिम उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके एक बड़ी सफलता हासिल की थी।इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में काफी सफलता हासिल कर लिया है, लेकिन अब समय आ गया है जब इसरो व्यावसायिक सफलता के साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण पर भी ध्यान दे। इसरो को अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी, क्योंकि जैसे-जैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी अंतरिक्ष अन्वेषण बेहद महत्त्वपूर्ण ...
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ब्रह्मांड सौर औरब्रह्मांड के बारे में सबसे डरावनी चीज क्या है ? By Vnita kasnia punjab हम ब्रह्मांड में हम इतने छोटे और असंगत हैं, इसका अंदाजा आप को अभी लग जायेगा। अगर कल पृथ्वी फट गयी तो ब्रह्मांड को इसकी भनक तक नहीं लगेगी।उदाहरण के लिए, इन तस्वीरों को देखते है ।पृथ्वी को देखते है :अब बृहस्पति और शनि की तुलना में पृथ्वी को देखें…लेकिन जब आप इसकी तुलना सूर्य से करते हैं, तो पृथ्वी धूल का एक गोला है और वहाँ आपको लगता है कि "सूरज बहुत भयानक है वास्तव में, ऐसा नहीं है। अब इसकी तुलना मिल्की वॉयस के अन्य सितारों से करते है।अच्छे से तुलना के लिए, आर्कटुरस (जो हमारे सूरज को भी छोटा कर दे ), मिल्की वॉयस में अन्य बड़े सितारों की तुलना में दिखाई देता है।Antares एक विशाल और प्रभावशाली सितारे होते है ना? खैर, आइए मिल्की वॉयस को देखें ... मुझे यकीन है कि यह मिल्की वॉयस के आगे कुछ भी नहीं है !Milky way एक प्रभावशाली आकाशगंगा है, ज़रुरी नहीं। अभी भी उनमें से लाखों खरब ब्रह्मांड में मौजूद हैं।अगर कल को पृथ्वी को कुछ हो भी जाता है, तो ब्रह्मण्ड में इसका कुछ भी असर नहीं होगा।जैसे समुद्र से एक बूंद निकाल लो।उत्तर अच्छा लगा हो तो अपवोट कीजियेगा, धन्यवाद !

ब्रह्मांड सौर और ब्रह्मांड के बारे में सबसे डरावनी चीज क्या है ? By Vnita kasnia punjab हम ब्रह्मांड में हम इतने छोटे और असंगत हैं, इसका अंदाजा आप को अभी लग जायेगा। अगर कल पृथ्वी फट गयी तो ब्रह्मांड को इसकी भनक तक नहीं लगेगी। उदाहरण के लिए, इन तस्वीरों को देखते है । पृथ्वी को देखते है : अब बृहस्पति और शनि की तुलना में पृथ्वी को देखें… लेकिन जब आप इसकी तुलना सूर्य से करते हैं, तो पृथ्वी धूल का एक गोला है और वहाँ आपको लगता है कि "सूरज बहुत भयानक है वास्तव में, ऐसा नहीं है। अब इसकी तुलना मिल्की वॉयस के अन्य सितारों से करते है। अच्छे से तुलना के लिए, आर्कटुरस (जो हमारे सूरज को भी छोटा कर दे ), मिल्की वॉयस में अन्य बड़े सितारों की तुलना में दिखाई देता है। Antares एक विशाल और प्रभावशाली सितारे होते है ना? खैर, आइए मिल्की वॉयस को देखें ... मुझे यकीन है कि यह मिल्की वॉयस के आगे कुछ भी नहीं है ! Milky way एक प्रभावशाली आकाशगंगा है, ज़रुरी नहीं। अभी भी उनमें से लाखों खरब ब्रह्मांड में मौजूद हैं। अगर कल को पृथ्वी को कुछ हो भी जाता है, तो ब्रह्मण्ड में इसका कुछ भी असर नहीं होगा। जैसे समुद्र स...

क्या यह संभव है कि पृथ्वी की सतह पर कोई वस्तु इतनी भारी हो कि वह पृथ्वी की गति को बदल दे? By वनिता कासनियां पंजाब थ्री गोर्जेस डैमयह बांध चीन के हुबेई प्रांत में स्थित है, और यह पृथ्वी पर सबसे बड़ा पनबिजली परियोजना है, जो 22,500 मेगावाट उत्पादन करने में सक्षम है। जब इसे भरा जाता है तो पानी समुद्र तल से 175 मीटर और नदी तल से 95 मीटर ऊपर होता है। इस संचित जल भंडार से 632 वर्ग किलोमीटर तक बाढ़ की क्षमता रखता है और इसमें 42 बिलियन टन पानी आ सकता है।नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब यह बांध भर जाता है, moment of inertia नामक एक घटना होती है, जो पृथ्वी के घूर्णन को प्रभावित करती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, पूरा बांध पृथ्वी के घूमने को धीमा कर देता है, दिन की लंबाई को 0.06 माइक्रोसेकंड तक बढ़ा देता है और यहां तक ​​कि ग्रह के आकार को बदलने की क्षमता रखता है।धन्यवाद🙏

इंसानी दिमाग के बारे कुछ चकित कर देने वाले रोचक तथ्य क्या हैं? By वनिता कासनियां पंजाब द्वारा 1.] हमारे दिमाग में कई ऐसे हिस्से है जो बंद पड़े है और वो हिस्से तभी खुलते है जब हम दिमाग से कसरत करवाते है कहने का मतलब आप जितना अधिक सीखते चले जाओगे, जितना अधिक दिमाग का इस्तेमाल करके उससे काम करवाओगे उतनी ही तेज़ी से आपके दिमाग के बंद हिस्से खुलने शुरू हो जाएंगे और आपका दिमाग तेज़ होना शुरू हो जाएगा। इसलिए लगातार अपनी फील्ड के बारे में पढ़ते जाएं और नया सीखते जाएं। 2.] हम कोई भी वस्तु अपने आंखों से नहीं बल्कि अपने दिमाग़ की मदद से देख पाते हैं आंख सिर्फ information लेता है और उसका प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाकर हमारे दिमाग़ तक पहुँचाता है। 3.] पूरे दिन की तुलना में लंच के बाद हमारी याददाश्त सबसे ज़्यादा कमजोर होती है। 4.] किसी के ना बोलने पर भी खुद का नाम सुनाई देना एक स्वस्थ दिमाग की निशानी है। 5 ] पूरी जिंदगी में हमारा दिमाग लगभग 10 लाख GB डेटा स्टोर करता हैं।
हाइपरसोनिक मिसाइल के बाद अब चीन बना रहा हाइपरसोनिक गोली, 4 किमी प्रति सेकंड की स्पीड से सूअरों पर लगाया निशाना, ऐसा मिला रिजल्ट Curated by वनिता कासनियां पंजाब   Hypersonic Bullet By China: चीन हाइपरसोनिक तकनीक में तेजी से आगे बढ़ रहा है। चीन हाइपरसोनिक मिसाइल क Show More चीन ने हाइपरसोनिक गोली का किया टेस्ट। हाइलाइट्स चीन एक ऐसी गोली विकसित कर रहा है जो हाइपरसोनिक स्पीड से फायर हो चीन में इस गोली का एक टेस्ट सूअरों पर किया गया है जिसके रिजल्ट आए हैं इस गोली की स्पीड ही इसके विकास में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है बीजिंग:  चीन आवाज से पांच गुना ज्यादा स्पीड यानी हाइपरसोनिक स्पीड से चलने वाले मिसाइल और इंजन के निर्माण में लगा है। लेकिन अब अपने हाइपरसोनिक प्रोजेक्ट के आकार को चीन ने छोटा करने का फैसला किया है। चीन हाइपरसोनिक स्पीड से चलने वाली गोली बना रहा है। चीन ने हाल ही में इस तरह की गोली के प्रोटोटाइप का टेस्ट जिंदा टार्गेट पर भी किया है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक चोंगकिंग में एक आर्मी मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने हाल ही में 11 मैक (11 Mach) की स्पीड से फ...

Neptune(वरुण) ,,नेप्चून सूर्य से दूर हिसाब से सूर्य से दूरी के हिसाब से सौरमंडल का आठवां ग्रह है नेप्चून पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है और यह सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है यूरेनस सबसे ठंडा ग्रह उसके बाद नेपच्यून ही ठंडा ग्रह है नेपच्यून सूर्य से सबसे ज्यादा दूर होने के कारण सबसे ठंडा ग्रह नहीं है क्योंकि नेपच्यून के अंदर कार्बन कार्बन डाइऑक्साइड की कुछ मात्रा पाई जाती है वह सूर्य किरणों को अवशोषित कर लेती है या फिर ठीक है बहुत ज्यादा दूर होने के कारण इसको पृथ्वी से नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता पर यह पृथ्वी से देखने एक तारे की तरह दिखाई देता है टिमटिमाता हुआ इसका गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के समान है बताया जाता है कि नेपच्यून के ऊपर हवाएं बहुत तेज चलती है इन हवाओं की रफ्तार लगभग 2100 किलोमीटर प्रति घंटे की सबसे होती है यह पृथ्वी के मुकाबले बहुत ज्यादा है

Neptune(वरुण)   ,, नेप्चून सूर्य से दूर हिसाब से सूर्य से दूरी के हिसाब से सौरमंडल का आठवां ग्रह है नेप्चून पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है और यह सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है यूरेनस सबसे ठंडा ग्रह उसके बाद नेपच्यून ही ठंडा ग्रह है नेपच्यून सूर्य से सबसे ज्यादा दूर होने के कारण सबसे ठंडा ग्रह नहीं है क्योंकि नेपच्यून के अंदर कार्बन कार्बन डाइऑक्साइड की कुछ मात्रा पाई जाती है वह सूर्य किरणों को अवशोषित कर लेती है या फिर ठीक है बहुत ज्यादा दूर होने के कारण इसको पृथ्वी से नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता पर यह पृथ्वी से देखने एक तारे की तरह दिखाई देता है टिमटिमाता हुआ इसका गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के समान है बताया जाता है कि नेपच्यून के ऊपर हवाएं बहुत तेज चलती है इन हवाओं की रफ्तार लगभग 2100 किलोमीटर प्रति घंटे की सबसे होती है यह पृथ्वी के मुकाबले बहुत ज्यादा है

Uranus(अरुण) ,यूरेनस सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है यूरेनस सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है जिस की खोज 13 मार्च 1781 को विलियम हर्शेल ने की थी और यह घर है सूर्य से दूरी के अनुसार सातवां ग्रह यह है युरेनस सूर्य से लगभग 29 करोड़ किलोमीटर दूर है और यह पृथ्वी से 63 गुना बड़ा और 15 गुना भारी है और युरेनस के 27 उपग्रह ज्ञात किए गए हैं एरियल मरिंडा आदि है और यूरेनस पर एक दिन लगभग 11 घंटे का होता है इसको पृथ्वी से नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता पर कई बारी रात के समय साफ आसमान में इसको दूरबीन के द्वारा देखा जा सकता है

Uranus(अरुण)   , यूरेनस सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है यूरेनस सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है जिस की खोज 13 मार्च 1781 को विलियम हर्शेल ने की थी और यह घर है सूर्य से दूरी के अनुसार सातवां ग्रह यह है युरेनस सूर्य से लगभग 29 करोड़ किलोमीटर दूर है और यह पृथ्वी से 63 गुना बड़ा और 15 गुना भारी है और युरेनस के 27 उपग्रह ज्ञात किए गए हैं एरियल मरिंडा आदि है और यूरेनस पर एक दिन लगभग 11 घंटे का होता है इसको पृथ्वी से नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता पर कई बारी रात के समय साफ आसमान में इसको दूरबीन के द्वारा देखा जा सकता है

Saturn (शनि) ,शनि ग्रह बृहस्पति ग्रह के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है इसकी सूर्य की दूरी के अनुसार सौरमंडल में छठा स्थान है इसकी सूर्य से दूरी लगभग 143 करोड़ किलोमीटर है यह सौरमंडल का सबसे हल्का ग्रह है यह इतना हल्का है कि यदि पानी में रख दिया जाए तो भी नहीं डूबेगा और बृहस्पति के बाद यह सबसे चमकीला ग्रह भी है यह चमकीला होने के कारण इसको पृथ्वी से में देखा जा सकता है यह ग्रह लगभग 96 प्रतिशत हाइड्रोजन पर 3% ही नियम और अन्य तत्वों जेसे मिथेन अमोनिया और फास्फीन से बना है शनि ग्रह के 62 उपग्रह देखे गए हैं और इसका व्यास भूमध्य रेखीय व्यास 1,20,536 किलो मीटर है और इस का औसतन तापमान लगभग -139 डिग्री सेल्सियस हैशनि ग्रह सूर्य के चारों ओर अपनी परिक्रमा 10 घंटे और 34 मिनट में पूरी कर लेता है जो बेस्ट बृहस्पति ग्रह के बाद सबसे तेज है इसलिए शनि ग्रह पर केवल 10 घंटे और 34 मिनट का ही दिन होता है

Saturn (शनि)   , शनि ग्रह बृहस्पति ग्रह के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है इसकी सूर्य की दूरी के अनुसार सौरमंडल में छठा स्थान है इसकी सूर्य से दूरी लगभग 143 करोड़ किलोमीटर है यह सौरमंडल का सबसे हल्का ग्रह है यह इतना हल्का है कि यदि पानी में रख दिया जाए तो भी नहीं डूबेगा और बृहस्पति के बाद यह सबसे चमकीला ग्रह भी है यह चमकीला होने के कारण इसको पृथ्वी से में देखा जा सकता है यह ग्रह लगभग 96 प्रतिशत हाइड्रोजन पर 3% ही नियम और अन्य तत्वों जेसे मिथेन अमोनिया और फास्फीन से बना है शनि ग्रह के 62 उपग्रह देखे गए हैं और इसका व्यास भूमध्य रेखीय व्यास 1,20,536 किलो मीटर है और इस का औसतन तापमान लगभग -139 डिग्री सेल्सियस हैशनि ग्रह सूर्य के चारों ओर अपनी परिक्रमा 10 घंटे और 34 मिनट में पूरी कर लेता है जो बेस्ट बृहस्पति ग्रह के बाद सबसे तेज है इसलिए शनि ग्रह पर केवल 10 घंटे और 34 मिनट का ही दिन होता है