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Neptune(वरुण) ,,नेप्चून सूर्य से दूर हिसाब से सूर्य से दूरी के हिसाब से सौरमंडल का आठवां ग्रह है नेप्चून पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है और यह सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है यूरेनस सबसे ठंडा ग्रह उसके बाद नेपच्यून ही ठंडा ग्रह है नेपच्यून सूर्य से सबसे ज्यादा दूर होने के कारण सबसे ठंडा ग्रह नहीं है क्योंकि नेपच्यून के अंदर कार्बन कार्बन डाइऑक्साइड की कुछ मात्रा पाई जाती है वह सूर्य किरणों को अवशोषित कर लेती है या फिर ठीक है बहुत ज्यादा दूर होने के कारण इसको पृथ्वी से नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता पर यह पृथ्वी से देखने एक तारे की तरह दिखाई देता है टिमटिमाता हुआ इसका गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के समान है बताया जाता है कि नेपच्यून के ऊपर हवाएं बहुत तेज चलती है इन हवाओं की रफ्तार लगभग 2100 किलोमीटर प्रति घंटे की सबसे होती है यह पृथ्वी के मुकाबले बहुत ज्यादा है

Neptune(वरुण)   ,, नेप्चून सूर्य से दूर हिसाब से सूर्य से दूरी के हिसाब से सौरमंडल का आठवां ग्रह है नेप्चून पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है और यह सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है यूरेनस सबसे ठंडा ग्रह उसके बाद नेपच्यून ही ठंडा ग्रह है नेपच्यून सूर्य से सबसे ज्यादा दूर होने के कारण सबसे ठंडा ग्रह नहीं है क्योंकि नेपच्यून के अंदर कार्बन कार्बन डाइऑक्साइड की कुछ मात्रा पाई जाती है वह सूर्य किरणों को अवशोषित कर लेती है या फिर ठीक है बहुत ज्यादा दूर होने के कारण इसको पृथ्वी से नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता पर यह पृथ्वी से देखने एक तारे की तरह दिखाई देता है टिमटिमाता हुआ इसका गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के समान है बताया जाता है कि नेपच्यून के ऊपर हवाएं बहुत तेज चलती है इन हवाओं की रफ्तार लगभग 2100 किलोमीटर प्रति घंटे की सबसे होती है यह पृथ्वी के मुकाबले बहुत ज्यादा है

Uranus(अरुण) ,यूरेनस सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है यूरेनस सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है जिस की खोज 13 मार्च 1781 को विलियम हर्शेल ने की थी और यह घर है सूर्य से दूरी के अनुसार सातवां ग्रह यह है युरेनस सूर्य से लगभग 29 करोड़ किलोमीटर दूर है और यह पृथ्वी से 63 गुना बड़ा और 15 गुना भारी है और युरेनस के 27 उपग्रह ज्ञात किए गए हैं एरियल मरिंडा आदि है और यूरेनस पर एक दिन लगभग 11 घंटे का होता है इसको पृथ्वी से नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता पर कई बारी रात के समय साफ आसमान में इसको दूरबीन के द्वारा देखा जा सकता है

Uranus(अरुण)   , यूरेनस सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है यूरेनस सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है जिस की खोज 13 मार्च 1781 को विलियम हर्शेल ने की थी और यह घर है सूर्य से दूरी के अनुसार सातवां ग्रह यह है युरेनस सूर्य से लगभग 29 करोड़ किलोमीटर दूर है और यह पृथ्वी से 63 गुना बड़ा और 15 गुना भारी है और युरेनस के 27 उपग्रह ज्ञात किए गए हैं एरियल मरिंडा आदि है और यूरेनस पर एक दिन लगभग 11 घंटे का होता है इसको पृथ्वी से नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता पर कई बारी रात के समय साफ आसमान में इसको दूरबीन के द्वारा देखा जा सकता है

Saturn (शनि) ,शनि ग्रह बृहस्पति ग्रह के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है इसकी सूर्य की दूरी के अनुसार सौरमंडल में छठा स्थान है इसकी सूर्य से दूरी लगभग 143 करोड़ किलोमीटर है यह सौरमंडल का सबसे हल्का ग्रह है यह इतना हल्का है कि यदि पानी में रख दिया जाए तो भी नहीं डूबेगा और बृहस्पति के बाद यह सबसे चमकीला ग्रह भी है यह चमकीला होने के कारण इसको पृथ्वी से में देखा जा सकता है यह ग्रह लगभग 96 प्रतिशत हाइड्रोजन पर 3% ही नियम और अन्य तत्वों जेसे मिथेन अमोनिया और फास्फीन से बना है शनि ग्रह के 62 उपग्रह देखे गए हैं और इसका व्यास भूमध्य रेखीय व्यास 1,20,536 किलो मीटर है और इस का औसतन तापमान लगभग -139 डिग्री सेल्सियस हैशनि ग्रह सूर्य के चारों ओर अपनी परिक्रमा 10 घंटे और 34 मिनट में पूरी कर लेता है जो बेस्ट बृहस्पति ग्रह के बाद सबसे तेज है इसलिए शनि ग्रह पर केवल 10 घंटे और 34 मिनट का ही दिन होता है

Saturn (शनि)   , शनि ग्रह बृहस्पति ग्रह के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है इसकी सूर्य की दूरी के अनुसार सौरमंडल में छठा स्थान है इसकी सूर्य से दूरी लगभग 143 करोड़ किलोमीटर है यह सौरमंडल का सबसे हल्का ग्रह है यह इतना हल्का है कि यदि पानी में रख दिया जाए तो भी नहीं डूबेगा और बृहस्पति के बाद यह सबसे चमकीला ग्रह भी है यह चमकीला होने के कारण इसको पृथ्वी से में देखा जा सकता है यह ग्रह लगभग 96 प्रतिशत हाइड्रोजन पर 3% ही नियम और अन्य तत्वों जेसे मिथेन अमोनिया और फास्फीन से बना है शनि ग्रह के 62 उपग्रह देखे गए हैं और इसका व्यास भूमध्य रेखीय व्यास 1,20,536 किलो मीटर है और इस का औसतन तापमान लगभग -139 डिग्री सेल्सियस हैशनि ग्रह सूर्य के चारों ओर अपनी परिक्रमा 10 घंटे और 34 मिनट में पूरी कर लेता है जो बेस्ट बृहस्पति ग्रह के बाद सबसे तेज है इसलिए शनि ग्रह पर केवल 10 घंटे और 34 मिनट का ही दिन होता है

Jupiter (बृहस्पति) बृहस्पति हमारे सौरमंडल का सूर्य की दूरी के अनुसार पांचवा ग्रह है यह मंडल का सौरमंडल का सबसे बड़ा घर है जो लगभग पृथ्वी से 3 गुना बड़ा है जुपिटर की खोज सन 1610 में खगोलिय ने की थी जुपिटर का गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ज्यादा है जिससे यह एस्ट्रोनॉट को अपनी ओर खींचता रहता है और पृथ्वी को एस्ट्रोनॉट से बचाता है जुपिटर पर दिन और ग्रहों के मुकाबले छोटा होता है इसमें एक दिन केवल 9 घंटे 55 मिनट का होता है क्योंकि जुपिटर सूर्य के चारों ओर परिक्रमा इतने ही समय में कर लेता है और ग्रहों के मुकाबले सबसे तेज है इस ग्रह का आकार बड़ा होने के कारण यह सूर्य के चारों ओर तेजी से परिक्रमा कर लेता है कहा जाता है,सन 1973 से 2003 तक जुपिटर पर 8 मिशन भेज दिए गए हैं वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जुपिटर पर लगभग लगभग पिछले 300 सालों से एक बवंडर चल रहा है यह बवंडर इतना बड़ा है कि इसमें तीन पृथ्वी समा जाए जुपिटर के चार उपग्रह है आयोग यूरोपा गनिमिड और कैलीस्टो और जुपिटर का गनिमिड उपग्रह सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह हैजुपिटर की सतह का तापमान लगभग माइनस 108 डिग्री सेल्सियस है क्योंकि जुपिटर पर 10% हीलियम और लगभग 85 प्रतिशत हाइड्रोजन और 5% कुछ अन्य गैसे पाई जाती है जुपिटर पर पानी 1% से भी कम मात्रा में पाया जाता है इसलिए जुपिटर पर जीवन लगभग संभव नहीं है|

 Jupiter (बृहस्पति)   बृहस्पति हमारे सौरमंडल का सूर्य की दूरी के अनुसार पांचवा ग्रह है यह मंडल का सौरमंडल का सबसे बड़ा घर है जो लगभग पृथ्वी से 3 गुना बड़ा है जुपिटर की खोज सन 1610 में खगोलिय ने की थी जुपिटर का गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ज्यादा है जिससे यह एस्ट्रोनॉट को अपनी ओर खींचता रहता है और पृथ्वी को एस्ट्रोनॉट से बचाता है जुपिटर पर दिन और ग्रहों के मुकाबले छोटा होता है इसमें एक दिन केवल 9 घंटे 55 मिनट का होता है क्योंकि जुपिटर सूर्य के चारों ओर परिक्रमा इतने ही समय में कर लेता है और ग्रहों के मुकाबले सबसे तेज है इस ग्रह का आकार बड़ा होने के कारण यह सूर्य के चारों ओर तेजी से परिक्रमा कर लेता है कहा जाता है , सन 1973 से 2003 तक जुपिटर पर 8 मिशन भेज दिए गए हैं वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जुपिटर पर लगभग लगभग पिछले 300 सालों से एक बवंडर चल रहा है यह बवंडर इतना बड़ा है कि इसमें तीन पृथ्वी समा जाए जुपिटर के चार उपग्रह है आयोग यूरोपा गनिमिड और कैलीस्टो और जुपिटर का गनिमिड उपग्रह सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह हैजुपिटर की सतह का तापमान लगभग माइनस 108 डिग्री सेल्सियस है...

(मंगल ग्रह)

Mars(मंगल)  , मंगल सौरमंडल का चौथा ग्रह है मंगल ग्रह की दूरी सूर्य से लगभग 22 करोड 79 लाख किलोमीटर है इस ग्रह का व्यास लगभग 6794 किलोमीटर है इस ग्रह किस ग्रह को लाल ग्रह भी कहा जाता है क्योंकि इस ग्रह की मिट्टी में पाए जाने वाले लोहा खनिज के जंग लगने के कारण इसकी मीठी लाल दिखाई देती है और इस ग्रह को दूर से देखने पर यह लाल दिखाई देते हैं वैज्ञानिकों ने खोज करने के बाद पता लगाया कि मंगल ग्रह की सतह काफी पुरानी है और मंगल ग्रह पर कुछ नदियां घाटियां साड़ियां और पठार भी है मंगल ग्रह पर एक ओलंपस मोंस पहाड़ी है जो माउंट एवरेस्ट से लगभग 3 गुना ऊंची है इस पहाड़ी की ऊंचाई लगभग 24 किलोमीटर है मंगल ग्रह का 1 दिन 24 घंटे से थोड़ा ज्यादा होता है मंगल ग्रह पर एक साल में पृथ्वी के 687 दिनों के बराबर है मंगल ग्रह पर पानी और कार्बन डाइऑक्साइड की बर्फ की परत में पाई जाती है.

Earth(पृथ्वी) ,तीसरा ग्रह पृथ्वी जो हमारा अपना घर है जिस पर हम रहते हैं इसके बारे में तो हम बहुत कुछ जानते हैं और आप पृथ्वी के बारे में कुछ जानना चाहते हैं

Earth(पृथ्वी)   , तीसरा ग्रह पृथ्वी जो हमारा अपना घर है जिस पर हम रहते हैं इसके बारे में तो हम बहुत कुछ जानते हैं और आप पृथ्वी के बारे में कुछ जानना चाहते हैं 

Venus (शुक्र) शुक्र हमारे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है यह सूर्य दुरी के हिसाब से सौरमंडल का दूसरा ग्रह है इसकी दुरी सूर्य से लगभग 82 करोड़ 10 लाख किलोमीटर है और यह ग्रह सबसे चमकीला ग्रह भी है यह पृथ्वी से भी देखा जा सकता है इस ग्रह का तापमान लगभग 437 डिग्री सेल्सियस है विनस ग्रह एक ऐसा ग्रह है जिस पर लगभग 1000 से ज्यादा ज्वालामुखी की खोज की है विनस का आकार लगभग हमारी धरती जितना है और यह अर्थ सिस्टर प्लेनेट के नाम से जाना जाता है विनस का वातावरण इतना घना है कि की अंदर की सतह को देख पाना लगभग नामुमकिन है और वीनस ऐसा प्लेनेट है जो यूरेनस को छोड़ कर बाकी दूसरे ग्रहों से उलटी दिशा की ओर घूमते हैं ग्रह काउंटर क्लॉक वाइज दी डायरेक्शन में घूमते हैं पर यूरेनस और वीनस क्लॉक वाइज डायरेक्शन घूमते हैं और विनस का भी कोई चंद्रमा नहीं है.By वनिता कासनियां पंजाब

Venus (शुक्र)   , शुक्र हमारे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है यह सूर्य दुरी के हिसाब से सौरमंडल का दूसरा ग्रह है इसकी दुरी सूर्य से लगभग 82 करोड़ 10 लाख किलोमीटर है और यह ग्रह सबसे चमकीला ग्रह भी है यह पृथ्वी से भी देखा जा सकता है इस ग्रह का तापमान लगभग 437 डिग्री सेल्सियस है विनस ग्रह एक ऐसा ग्रह है जिस पर लगभग 1000 से ज्यादा ज्वालामुखी की खोज की है विनस का आकार लगभग हमारी धरती जितना है और यह अर्थ सिस्टर प्लेनेट के नाम से जाना जाता है विनस का वातावरण इतना घना है कि की अंदर की सतह को देख पाना लगभग नामुमकिन है और वीनस ऐसा प्लेनेट है जो यूरेनस को छोड़ कर बाकी दूसरे ग्रहों से उलटी दिशा की ओर घूमते हैं ग्रह काउंटर क्लॉक वाइज दी डायरेक्शन में घूमते हैं पर यूरेनस और वीनस क्लॉक वाइज डायरेक्शन घूमते हैं और विनस का भी कोई चंद्रमा नहीं है. By वनिता कासनियां पंजाब

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी सौरमंडल में 8 ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण.,सौरमंडल में 9वां ग्रह प्लूटो था, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया क्योंकि यह बहुत छोटा था.ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं.सूर्य हमारी गैलेक्सी मिल्की वे से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है.सूर्य मिल्की वे के चारो ओर 250 किमी/ सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है.मिल्की वे के चारो ओर घूमने में लगा वक्त 25 करोड़ वर्ष है, जिसे ब्रह्मांड वर्ष भी कहते हैं.सूर्य अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम की ओर घूमता है.हमारा सौरमंडल करीब 4.6 बिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आया.सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है.ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति और सबसे छोटा ग्रह बुध है.

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी  सौरमंडल में 8 ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण. , सौरमंडल में 9वां ग्रह प्लूटो था, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया क्योंकि यह बहुत छोटा था. ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं. सूर्य हमारी गैलेक्सी मिल्की वे से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है. सूर्य मिल्की वे के चारो ओर 250 किमी/ सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है. मिल्की वे के चारो ओर घूमने में लगा वक्त 25 करोड़ वर्ष है, जिसे ब्रह्मांड वर्ष भी कहते हैं. सूर्य अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम की ओर घूमता है. हमारा सौरमंडल करीब 4.6 बिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आया. सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है. ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति और सबसे छोटा ग्रह बुध है.

Mercury (बुध) ,,बुध हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है और यह हमारे सौरमंडल का सबसे पहला ग्रह भी है जो सूर्य के सबसे करीब है यह सूर्य के करीब होने के कारण पर भी सबसे गर्म नहीं है क्योंकि इसके ऊपर कोई वातावरण नहीं है और वातावरण न होने के कारण इस में कार्बन डाइऑक्साइड गैस नहीं है जो सूर्य की किरणों को अवशोषित करती है और ग्रह को गर्म रख सके इसलिए यह ग्रह सूरज के सबसे करीब होने के कारण भी सबसे गर्म ग्रह नहीं है सूर्य से बुध ग्रह की दूरी सूर्य से लगभग 4करोड़ 60लाख किलोमीटर दूर है और बुध ग्रह की रात और दिन के तापमान में बहुत ज्यादा अंतर होता है दिन का तापमान लगभग 445 डिग्री सेल्सियस होता है और रात के तापमान में इतनी ज्यादा गिरावट हो जाती है कि वह-176 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है कि हम और यह ग्रह सौरमंडल का सबसे हल्का ग्रह भी है और इसके ऊपर इस ग्रह का कोई चंद्रमा भी नहीं है जो इसके ऊपर दिखाई दे बुध ग्रह कि सतह इतनी उबड़ खाबड़ है कि इसमें बहुत गहरे गहरे गड्ढे हुए हैं कई गडे तो सेंकडो किलोमीटर लंबे और 3 किलो मीटर गहरे भी है यदि आपको इस ग्रह को देखना है तो सुबह सुबह सूर्ये उगने से पहले देख सकते है

Mercury (बुध)   ,, बुध हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है और यह हमारे सौरमंडल का सबसे पहला ग्रह भी है जो सूर्य के सबसे करीब है यह सूर्य के करीब होने के कारण पर भी सबसे गर्म नहीं है क्योंकि इसके ऊपर कोई वातावरण नहीं है और वातावरण न होने के कारण इस में कार्बन डाइऑक्साइड गैस नहीं है जो सूर्य की किरणों को अवशोषित करती है और ग्रह को गर्म रख सके इसलिए यह ग्रह सूरज के सबसे करीब होने के कारण भी सबसे गर्म ग्रह नहीं है सूर्य से बुध ग्रह की दूरी सूर्य से लगभग 4करोड़ 60लाख किलोमीटर दूर है और बुध ग्रह की रात और दिन के तापमान में बहुत ज्यादा अंतर होता है दिन का तापमान लगभग 445 डिग्री सेल्सियस होता है और रात के तापमान में इतनी ज्यादा गिरावट हो जाती है कि वह-176 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है कि हम और यह ग्रह सौरमंडल का सबसे हल्का ग्रह भी है और इसके ऊपर इस ग्रह का कोई चंद्रमा भी नहीं है जो इसके ऊपर दिखाई दे बुध ग्रह कि सतह इतनी उबड़ खाबड़ है कि इसमें बहुत गहरे गहरे गड्ढे हुए हैं कई गडे तो सेंकडो किलोमीटर लंबे और 3 किलो मीटर गहरे भी है यदि आपको इस ग्रह को देखना है तो सुबह सुबह सू...

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी जब भी आकाश की चर्चा की जाती है या सौरमंडल भी चर्चा की जाती है तो उसमें ग्रह की बात सबसे पहले की जाती है सौरमंडल में आठ ग्रह है ग्रहों की की विशेषता और कुछ कारण है जो इनको एक दूसरे से अलग बनाते हैं और क्या ऐसे कारण है जो इन सभी ग्रह को एक दूसरे से अलग बनाते हैं इन ग्रहों को दो कैटेगरी में बांटा गया है पहले चार ग्रहों को Terrestrial Planets कहा जाता है जो थोड़े ठोस प्रकार की है तो दूसरे चार ग्रहों को Gas Giants के नाम से जाना जाता है जो थोड़े कम ठोस है ज्यादातर गैस से निर्मित है पहले चार ग्रह Mercury Venus Earth Mars यह सब Terrestrial कैटेगरी में आते हैं और Jupiter., Saturn.Uranus.Neptune. गैस जेंट्स की कैटेगरी में आते हैं.

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी  जब भी आकाश की चर्चा की जाती है या सौरमंडल भी चर्चा की जाती है तो उसमें ग्रह की बात सबसे पहले की जाती है सौरमंडल में आठ ग्रह है ग्रहों की की विशेषता और कुछ कारण है जो इनको एक दूसरे से अलग बनाते हैं और क्या ऐसे कारण है जो इन सभी ग्रह को एक दूसरे से अलग बनाते हैं इन ग्रहों को दो कैटेगरी में बांटा गया है पहले चार ग्रहों को Terrestrial Planets कहा जाता है जो थोड़े ठोस प्रकार की है तो दूसरे चार ग्रहों को Gas Giants के नाम से जाना जाता है जो थोड़े कम ठोस है ज्यादातर गैस से निर्मित है पहले चार ग्रह Mercury Venus Earth Mars यह सब Terrestrial कैटेगरी में आते हैं और Jupiter. ,  Saturn.Uranus.Neptune. गैस जेंट्स की कैटेगरी में आते हैं.

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी सौरमंडल में पिंडों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है- परम्परागत ग्रह, बौने ग्रह और लघु सौरमंडलीय पिंड.परंपरागत ग्रह में बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और वरुण हैं.,बौने ग्रहों में प्लूटो, एरीज, सेरस, माकेमाके, हॉमिया हैं.लघु सौरमंडलीय पिंड में धूमकेतू, उपग्रह और अन्य छोटे खगोलीय पिंड शामिल हैं.सौरमंडल में बहुत ही छोटे- छोटे अरबों पिंड है जिन्‍हें धूमकेतू या पुच्छल तारे कहते हैं.चंद्रमा 6 ग्रहों और 3 बौने ग्रहों की परिक्रमा करता है.

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी  सौरमंडल में पिंडों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है- परम्परागत ग्रह, बौने ग्रह और लघु सौरमंडलीय पिंड. परंपरागत ग्रह में बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और वरुण हैं. , बौने ग्रहों में प्लूटो, एरीज, सेरस, माकेमाके, हॉमिया हैं. लघु सौरमंडलीय पिंड में धूमकेतू, उपग्रह और अन्य छोटे खगोलीय पिंड शामिल हैं. सौरमंडल में बहुत ही छोटे- छोटे अरबों पिंड है जिन्‍हें धूमकेतू या पुच्छल तारे कहते हैं. चंद्रमा 6 ग्रहों और 3 बौने ग्रहों की परिक्रमा करता है.

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी सौरमंडल में 8 ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण.,सौरमंडल में 9वां ग्रह प्लूटो था, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया क्योंकि यह बहुत छोटा था.ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं.सूर्य हमारी गैलेक्सी मिल्की वे से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है.सूर्य मिल्की वे के चारो ओर 250 किमी/ सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है.मिल्की वे के चारो ओर घूमने में लगा वक्त 25 करोड़ वर्ष है, जिसे ब्रह्मांड वर्ष भी कहते हैं.सूर्य अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम की ओर घूमता है.हमारा सौरमंडल करीब 4.6 बिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आया.सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है.ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति और सबसे छोटा ग्रह बुध है.

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी  सौरमंडल में 8 ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण. , सौरमंडल में 9वां ग्रह प्लूटो था, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया क्योंकि यह बहुत छोटा था. ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं. सूर्य हमारी गैलेक्सी मिल्की वे से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है. सूर्य मिल्की वे के चारो ओर 250 किमी/ सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है. मिल्की वे के चारो ओर घूमने में लगा वक्त 25 करोड़ वर्ष है, जिसे ब्रह्मांड वर्ष भी कहते हैं. सूर्य अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम की ओर घूमता है. हमारा सौरमंडल करीब 4.6 बिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आया. सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है. ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति और सबसे छोटा ग्रह बुध है.

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी By वनिता कासनियां पंजाब सौरमंडल में 8 ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण.सौरमंडल में 9वां ग्रह प्लूटो था, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया क्योंकि यह बहुत छोटा था.ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं.सूर्य हमारी गैलेक्सी मिल्की वे से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है.सूर्य मिल्की वे के चारो ओर 250 किमी/ सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है.मिल्की वे के चारो ओर घूमने में लगा वक्त 25 करोड़ वर्ष है, जिसे ब्रह्मांड वर्ष भी कहते हैं.सूर्य अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम की ओर घूमता है.हमारा सौरमंडल करीब 4.6 बिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आया.सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है.ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति और सबसे छोटा ग्रह बुध है.

सौर मंडल के बारे में रोचक जानकारी  By वनिता कासनियां पंजाब सौरमंडल में 8 ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण. सौरमंडल में 9वां ग्रह प्लूटो था, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया क्योंकि यह बहुत छोटा था. ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं. सूर्य हमारी गैलेक्सी मिल्की वे से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है. सूर्य मिल्की वे के चारो ओर 250 किमी/ सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है. मिल्की वे के चारो ओर घूमने में लगा वक्त 25 करोड़ वर्ष है, जिसे ब्रह्मांड वर्ष भी कहते हैं. सूर्य अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम की ओर घूमता है. हमारा सौरमंडल करीब 4.6 बिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आया. सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है. ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति और सबसे छोटा ग्रह बुध है.

ब्रह्मांड और अंतरिक्ष मे क्या अंतर है? By वनिता कासनियां पंजाब उत्तर:◆ब्रह्माण्ड -universe और अन्तरिक्ष-space में अंतर है भी और नहीं भी है। यह अन्तर इन दोनों शब्दों के प्रयोग और संदर्भ पर निर्भर है।◆व्यवहार में समुद्र तल से 100 किलो मीटर या 62 की ऊंचाई से अंतरिक्ष या स्पेस आरम्भ हो जाता है इसे karman line कारमन रेखा कहते हैं। चित्र नीचे दिया है।◆अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुसार स्पेस या अंतरिक्ष का उपयोग करने का सभी देशों को अधिकार है पर इसमें इसकी ऊंचाई फिर भी परिभाषित नहीं है।पहले इन शब्दों की व्यापक दार्शनिक और वैज्ञानिक स्थिति पर चर्चा करते हैं।★ यदि ब्रह्माण्ड universe को एक अति अति अति विशाल इकाई मानें तो अंतरिक्ष इसके भीतर ही स्थित हुआ मानना पड़ेगा।हमारी पृथ्वी इसी अंतरिक्ष में स्थित है, हम अंतरिक्ष यान भेजते हैं, ब्रह्मांड यान नहीं।यहाँ अंतरिक्ष अर्थात, space, आकाश ,गतिविधियों को कर पाने की जगह ।★★ अब हम ऐसे विशालतम ब्रह्माण्ड को एक नहीं अनेक मानें तो वे सभी अनेक ब्रह्माण्ड अंततः अंतरिक्ष में space में ही स्थित होंगे।●आधुनिक ब्रह्माण्ड विज्ञान में बहुत सारे ब्रह्मांडों Multi universe की बात भी होती है और parallel universe समांतर ब्रह्माण्ड की बात भी वैज्ञानिक करते हैं।●ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि नारद जी ने वैकुण्ठ लोक की बिरजा नदी में अनंत ब्रह्माण्ड पत्थर के टुकड़ों की तरह लुढ़कते देखे।●योग वाशिष्ठ में भी कई संस्तर लेयर्स में कई पैरेलल यूनिवर्स समानांतर ब्रह्मांड की चर्चा रानी लीला व देवी सरस्वती के बीच है।इन सभी तरह के ब्रह्मांडों के लिए स्थान तो लगेगा ही वही स्थान अंतरिक्ष या आकाश या स्पेस space है।जैसे कि हम अनंत आकाश गंगाओं गैलेक्सीज को अपने अंतरिक्ष में देखते हैं। और हम स्वयं भी अंतरिक्ष में स्थित हैं●● दरअसल अंतरिक्ष ,आकाश स्पेस या जगह या स्थान सभी को चाहिए होता है: चाहे बहुत बड़ी ब्रह्माण्ड की बात हो या सूक्षतम परमाणु या क्वांटा या क्वार्क इन सभी की भीतरी संरचना में स्पेस अंतरिक्ष आकाश होगा ही।पँचतत्वों की दृष्टि से आकाश सभी तत्वों में व्याप्त होता है।●अंतरिक्ष या स्पेस या आकाश के बिना पदार्थ मय ब्रह्माण्ड के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।● ब्रह्माण्ड में और कण में- सभी में अंतरिक्ष (स्पेस खाली स्थान ) व्याप्त है; जबकि इसके उलट अंतरिक्ष स्पेस में ही स्थूल स्तर पर एक या अनेक ब्रह्माण्ड भी व्याप्त हैंऔर सूक्ष्म स्तर पर कण भी व्याप्त हैं।◆ सीमित अर्थ में अन्तरिक्ष में पक्षी उड़ रहे का अर्थ होता है हमारे देखने की सीमा में या अधिक हुआ तो पृथ्वी के ऊपर के आकाश में ।●सार यह कि ब्रह्मांड,universe, cosmos शब्द और अंतरिक्ष शब्द इन दोनों के अर्थ में अन्तर का अनुमान सन्दर्भ के अनुसार करना चाहिए।★★ व्यवहार में पृथ्वी से स्पेस या अंतरिक्ष के आरम्भ होने की सीमा क्या है?चित्र :विकीपीडिया से साभार◆अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पृथ्वी के समुद्र तल से 100 किलोमीटर अथवा 62 मील तक की ऊंचाई के बाद से अंतरिक्ष का आरम्भ माना जाता है।पृथ्वी और अंतरिक्ष के बीच इस विभाजक रेखा को करमान लाइन KARMAN line कहा जाता है।इस ऊंचाई पर सामान्यतः वायुयान हवा के विरल दबाव के कारण उड़ नहीं सकते।इसी के आगे अंतरिक्ष यान space craft 205 से 275 मील के बीच पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं।यह औसत200 मील की ऊंचाई भी अंतरिक्ष की एक दूसरी सीमा है।इसके आगे 600 मील से ऊपर वायुमण्डल अति विरल हो जाने से सूर्य मण्डल की सौर प्रवाह सोलर विंड पृथ्वी की इस ऊपरी आवरण को निरन्तर प्रभावित करता रहता है।

ब्रह्मांड और अंतरिक्ष मे क्या अंतर है? By वनिता कासनियां पंजाब उत्तर: ◆ब्रह्माण्ड -universe और अन्तरिक्ष-space में अंतर है भी और नहीं भी है। यह अन्तर इन दोनों शब्दों के प्रयोग और संदर्भ पर निर्भर है। ◆व्यवहार में समुद्र तल से 100 किलो मीटर या 62 की ऊंचाई से अंतरिक्ष या स्पेस आरम्भ हो जाता है इसे karman line कारमन रेखा कहते हैं। चित्र नीचे दिया है। ◆अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुसार स्पेस या अंतरिक्ष का उपयोग करने का सभी देशों को अधिकार है पर इसमें इसकी ऊंचाई फिर भी परिभाषित नहीं है। पहले इन शब्दों की व्यापक दार्शनिक और वैज्ञानिक स्थिति पर चर्चा करते हैं। ★ यदि ब्रह्माण्ड universe को एक अति अति अति विशाल इकाई मानें तो अंतरिक्ष इसके भीतर ही स्थित हुआ मानना पड़ेगा। हमारी पृथ्वी इसी अंतरिक्ष में स्थित है, हम अंतरिक्ष यान भेजते हैं, ब्रह्मांड यान नहीं।यहाँ अंतरिक्ष अर्थात, space, आकाश ,गतिविधियों को कर पाने की जगह । ★★ अब हम ऐसे विशालतम ब्रह्माण्ड को एक नहीं अनेक मानें तो वे सभी अनेक ब्रह्माण्ड अंततः अंतरिक्ष में space में ही स्थित होंगे। ●आधुनिक ब्रह्माण्ड विज्ञान में बहुत सारे ब्रह्...

ईश्वर कहाँ रहता है ? By वनिता कासनियां पंजाब ईश्वर कहाँ रहता है ?अस्वीकरण: इस उत्तर में प्रगट किए गए विचारों से कोई भी असहमत हो सकता है।✍️ वैसे यह सवाल आस्तिकों केलिए ही नहीं, नास्तिकों केलिए भी महत्वपूर्ण है।क्योंकि नास्तिक भी तब ही नास्तिक बनते हैं, जब उन्हे ईश्वर के होने का कोई तथ्य यां सबूत नजर नहीं आता। विज्ञान भी हाथ खड़े कर देता है।तो नास्तिक भी उसके पीछे पीछे चलने लगता है।तो आज हम अवश्य बताएंगे कि वो अनंत, वो सत्य कहां रहता है। जिसकी शक्ति से पूरी सृष्टि गतिमान है।अब अगर हम सबसे प्राचीन वेदों और गीता को आधार बनाते हुए, उनके इशारे को समझें, तो सृष्टि यां ब्रह्मांड ऐसे पेड़ के बराबर हैं, जिसकी जड़ें उपर की और हैं और फल फूल नीचे की और हैं।यानी उल्टा।जैसे मनुष्य के शरीर का सहस्त्रार चक्र एक पेड़ की जड़ यां बीज के समान है और मूलाधार चक्र एक फल और फूल के।ऐसे ही ब्रह्मांड रूपी पेड़ में, समूह मनुष्य, जानवर, पेड़ पौधे आदि फल और फूल के रूप में हैं और पेड़ रूपी ब्रह्मांड की जड़ें और बीज उपर की और है, बहुत उपर की और।अब जैसे हम पृथ्वी पर हैं तो इसे भूलोक कहा जाता है। ऐसे ही उपर बढ़ते जाएं तो स्वर्गलोक, फिर तप लोग और अंत यां आदि में सत्यलोक है।यानी अंतरिक्ष से अरबों योजन दूर सत्य लोक है।जिसको ऋग्वेद में ऋतधाम कहा गया है और गीता में परमधाम।यहां पर उस अनंत, अजन्मे, निराकार और सत्य, ईश्वर का वास है। जिस की शक्ति यां प्रकाश से सारा ब्रह्मांड गतिमान है।मनुष्य वहां सिर्फ मोक्ष के बाद, पवित्र आत्मा के रूप में ही जा सकता है।यहां कोई जन्म मृत्यु नहीं है, सिर्फ अमरता है।तो ब्रह्मांड में मनुष्य क्या सभी प्रकार के जीव जंतु, पेड़ उस अनंत की शक्ति से ही चलायमान हैं।अब विज्ञान कहता है कि हम पृथ्वी पर 3 आयाम (Demension) में रह रहे हैं, यानी 3D.जैसे आगे पीछे, दाएं बाएं और उपर नीचे। यानी लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई यां गहराई।हम सिर्फ इसके बारे में जानते हैं।पर चौथा आयाम समय भी है।तो विज्ञान भी मानता है कि ब्रह्मांड में10 आयाम हो सकते हैं।वेद 64 आयाम की बात करता हैं।यह आयाम अवश्य हो सकते हैं, पर भूलोक में नहीं, उपर के लोकों में।जिसके बारे विज्ञान ग्रहों, ग्लैक्सियों, वॉर्म होल, ब्लैक होल की बात करता है तो वेद जैसे शास्त्र इन्हे लोक कहते हैं।शायद आज भी विज्ञान ब्रह्मांड के बारे में बहुत कम जानता है।क्योंकि हमारा ब्रह्मांड आज भी बहुत सारे रहस्य समेटे हुए हैं। जिनसे पर्दा हटना बाकी है।यह यूहीं नहीं चल रहा है। इन्हे कोई ना कोई शक्ति तो अवश्य चला रही है।वहीं शक्ति, जिन्हे अनंत कह लो, अजन्मा कह लो, निराकार कह लो यां सत्य कह लो। जिसे आदि कह लो यां अंत कह लो यां शून्य कह लो।बात एक ही है। वही तो ईश्वर है।बहुत बहुत धन्यवाद। 🙏🙏चित्र स्रोत:सभी चित्र विषय की स्पष्टता केलिए गूगल इमेजेस के द्वारा लिए गए हैं, आभार सहित। जिनके अधिकार, इनके असल मालिकों के पास पूर्ण सुरक्षित हैं।

ईश्वर कहाँ रहता है ? By वनिता कासनियां पंजाब ईश्वर कहाँ रहता है ? अस्वीकरण:  इस उत्तर में प्रगट किए गए विचारों से कोई भी असहमत हो सकता है। ✍️  वैसे यह सवाल आस्तिकों केलिए ही नहीं, नास्तिकों केलिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि नास्तिक भी तब ही नास्तिक बनते हैं, जब उन्हे ईश्वर के होने का कोई तथ्य यां सबूत नजर नहीं आता। विज्ञान भी हाथ खड़े कर देता है। तो नास्तिक भी उसके पीछे पीछे चलने लगता है। तो आज हम अवश्य बताएंगे कि वो अनंत, वो सत्य कहां रहता है। जिसकी शक्ति से पूरी सृष्टि गतिमान है। अब अगर हम सबसे प्राचीन वेदों और गीता को आधार बनाते हुए, उनके इशारे को समझें, तो सृष्टि यां ब्रह्मांड ऐसे पेड़ के बराबर हैं, जिसकी जड़ें उपर की और हैं और फल फूल नीचे की और हैं। यानी उल्टा। जैसे मनुष्य के शरीर का सहस्त्रार चक्र एक पेड़ की जड़ यां बीज के समान है और मूलाधार चक्र एक फल और फूल के। ऐसे ही ब्रह्मांड रूपी पेड़ में, समूह मनुष्य, जानवर, पेड़ पौधे आदि फल और फूल के रूप में हैं और पेड़ रूपी ब्रह्मांड की जड़ें और बीज उपर की और है, बहुत उपर की और। अब जैसे हम पृथ्वी पर हैं तो इसे भूलोक कहा जाता है। ऐस...

नासा द्वारा 'आदम का पुल' किसे कहा गया है? By वनिता कासनियां पंजाब ? भारत और श्रीलंका को जोड़नेवाले रामसेतु जिसे दुनिया एडम्स ब्रिज के नाम से जानती है उस पर अमेरिका में एक चैनल की तरफ से डॉक्यूमेंट्री दिखाए जाने और वहां के वैज्ञानिकों की तरफ से नासा तस्वीर का विश्लेषण कर इसे मानव निर्मित बताने के बाद यह एक बार फिर से राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया है। रामसेतु भारत के दक्षिण-पूर्व स्थित तमिलनाडु के रामेश्वर द्वीप और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की एक चेन है। इस पुल को भारत में राम सेतु के नाम से जाना जाता है। आइये जानते हैं रामसेतु के बारे में दस खास बातें और क्या है विवाद-1- श्रीलंका के मन्नार द्वीप से भारत के रामेश्वरम तक चट्टानों की जिस चेन को रामसेतु कहा जाता है दुनिया में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) नाम से जाना जाता है।2- इस पुल की लंबाई 30 मील यानि 48 किलोमीटर है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को एक दूसरे से अलग करता है।3- इस इलाक में समुद्र काफी उथला है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है।4- अनेक जगहों पर यह सूखी और कई जगहों पर उथली है जिसके चलते जहाजों की आवाजाही मुमकिन नहीं है।5- इसके बारे में कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी में इस ढांचे पर चलकर रामेश्वर से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था।6- लेकिन, तूफानों ने समुद्र को कुछ और गहरा किया और 1480 ईस्वी में यह चक्रवात के चलते टूट गया।7- साल 2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया था। इसके तहत एडम्स ब्रिज के कुछ इलाकों को हरना कर समुद्री जहाजों के लायक बनाए जाने की योजना थी। इसके लिए कुछ चट्टों को तोड़ना जरुरी था।8- माना जा रहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरेंगें, अनुमान है कि 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का उपयोग करेंगे।9- नासा से मिली तस्वीर का हवाला देकर दावा किया जाता है कि अवशेष मानवनिर्मित पुल के हैं। नासा का कहना है , ' इमेज हमारी है लेकिन यह विश्लेषण हमने नहीं दिया। रिमोट इमेज से नहीं कहा जा सकता कि यह मानवनिर्मित पुल है।10- अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने कहा है कि उसके खगोल वैज्ञानिकों द्वारा ली गई तस्वीरें यह साबित नहीं करतीं कि हिंदू ग्रंथ रामायण में वर्णित भगवान राम द्वारा निर्मित रामसेतु का वास्तविक रूप में कोई अस्तित्व रहा है।vnitakasniapunjab05114@gmail.comअप वोट करने से ना आपके पैसे कटते हैं ना मुझे पैसे मिलते हैं, मिलता है तो केवल अगला उत्तर लिखने के लिए एक मजबूत हौसला इसलिए आपसे निवेदन है कृपया उत्तर पढ़ने के बाद अप वोट अवश्य करें और इसी तरह अच्छे उत्तर पाने के लिए कृपया फॉलो करें क्योंकि सबसे पहले मैं अपने फॉलोवर्स के प्रश्नों का उत्तर देना पसंद करती हूं। धन्यवाद

नासा द्वारा 'आदम का पुल' किसे कहा गया है? By वनिता कासनियां पंजाब ? भारत और श्रीलंका को जोड़नेवाले रामसेतु जिसे दुनिया एडम्स ब्रिज के नाम से जानती है उस पर अमेरिका में एक चैनल की तरफ से डॉक्यूमेंट्री दिखाए जाने और वहां के वैज्ञानिकों की तरफ से नासा तस्वीर का विश्लेषण कर इसे मानव निर्मित बताने के बाद यह एक बार फिर से राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया है। रामसेतु भारत के दक्षिण-पूर्व स्थित तमिलनाडु के रामेश्वर द्वीप और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की एक चेन है। इस पुल को भारत में राम सेतु के नाम से जाना जाता है। आइये जानते हैं रामसेतु के बारे में दस खास बातें और क्या है विवाद- 1- श्रीलंका के मन्नार द्वीप से भारत के रामेश्वरम तक चट्टानों की जिस चेन को रामसेतु कहा जाता है दुनिया में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) नाम से जाना जाता है। 2- इस पुल की लंबाई 30 मील यानि 48 किलोमीटर है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को एक दूसरे से अलग करता है। 3- इस इलाक में समुद्र काफी उथला है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच ह...

मंगल ग्रह, ज्योतिष में क्या दर्शाता है? By वनिता कासनियां पंजाब किसी भी व्यक्ति के साथ आकारण दुर्घटना, घर में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का बिना कारण के बार-बार खराब होना, बार-बार क्रोध आना क्रोध के कारण हिंसा, यह सब मंगल ग्रह के कारण होता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो मंगल आपकी जन्मपत्री में आपके पराक्रम को दर्शाता है,व्यक्ति कितना मेहनती है अथवा कितना डरपोक है यह मंगल ग्रह के आकलन से पता चलता है। भले ही सामने से व्यक्ति बहुत बलवान दिखे लेकिन मंगल की स्थिति से यह पता लग जाता है कि व्यक्ति के अंदर कितना दाम है। मंगल बहुत सारी चीजों को दर्शाता है मंगल से छोटा भाई भी देखा जाता है, मंगल से रक्त संचार का संबंध भी है, स्त्रियों का मासिक धर्म मंगल और चंद्रमा के प्रभाव से जुड़ा हुआ है इसी प्रकार मंगल खराब होने पर दुर्घटना के कारण व्यक्ति का रक्त निकलता है, मंगल के प्रभाव से व्यक्ति को गुस्सा भी आता है इसलिए मंगल से क्रोध भी देखा जाता है यही सब मैंने ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा के दौरान सीखा है मेरी ज्योतिष की शिक्षा ही मेरे उत्तर का मूल स्रोत है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस।

मंगल ग्रह, ज्योतिष में क्या दर्शाता है? By वनिता कासनियां पंजाब किसी भी व्यक्ति के साथ आकारण दुर्घटना, घर में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का बिना कारण के बार-बार खराब होना, बार-बार क्रोध आना क्रोध के कारण हिंसा, यह सब मंगल ग्रह के कारण होता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो मंगल आपकी जन्मपत्री में आपके पराक्रम को दर्शाता है, व्यक्ति कितना मेहनती है अथवा कितना डरपोक है यह मंगल ग्रह के आकलन से पता चलता है। भले ही सामने से व्यक्ति बहुत बलवान दिखे लेकिन मंगल की स्थिति से यह पता लग जाता है कि व्यक्ति के अंदर कितना दाम है। मंगल बहुत सारी चीजों को दर्शाता है  मंगल से छोटा भाई भी देखा जाता है,  मंगल से रक्त संचार का संबंध भी है,  स्त्रियों का मासिक धर्म मंगल और चंद्रमा के प्रभाव से जुड़ा हुआ है  इसी प्रकार मंगल खराब होने पर दुर्घटना के कारण व्यक्ति का रक्त निकलता है, मंगल के प्रभाव से व्यक्ति को गुस्सा भी आता है इसलिए मंगल से क्रोध भी देखा जाता है यही सब मैंने ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा के दौरान सीखा है मेरी ज्योतिष की शिक्षा ही मेरे उत्तर का मूल स्रोत है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस।

पृथ्वी ब्रह्मांड में एक गोल पिंड की तरह है, तो क्या यदि हम इसे खोदकर इसके अंतिम छोड़ तक चले जाते हैं तो क्या हम अंतरिक्ष को देख पायेंगे? क्या ऐसा करना आसान है? By वनिता कासनियां पंजाब? अंतरिक्ष देखने के लिए हमें इतनी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है। बस रात में सर ऊपर कर के आसमान देख लीजिए। वही अंतरिक्ष है।नुब्रा घाटी, कश्मीरलेकिन, पृथ्वी के एक छोर से दूसरे तक का गड्ढा (सुरंग) बनाना १२वीं में भौतिकी के एक सवाल की याद दिलाता है। सवाल था:अगर हम पृथ्वी में एक छोर से दूसरे तक एक सुरंग बनाये और फिर उसमें कूदें तो क्या होगा?देखने में लगेगा कि ये प्रश्न बहुत आसान है। एक छोर से कूदेंगे तो दूसरे छोर से निकल आएँगे। क्या ही बड़ी बात है इस प्रश्न में?लेकिन दोस्त भौतिकी में यही बात तो ख़ास है कि कई बार जो हम सोचते हैं वो जरूरी नहीं असल जिंदगी में हो।अगर हम इस प्रश्न के समीकरण हल करें तो पायेंगे कि हम दूसरी छोर से नहीं निकलेंगे बल्कि पृथ्वी के अंदर ही एक छोर से दूसरे छोर का चक्कर लगाते रहेंगे। कभी ऊपर से नीचे तो कभी नीचे से ऊपर। हम इस सरल आवर्त गति (simple harmonic motion) में हमेशा के लिए फँस जायेंगे जब तक कि कोई बाहरी मदद ना मिले।कुछ इस तरह:चल बहुत रहा हूँ लेकिन कहीं पहुँच नहीं रहाअब सबसे बड़ा प्रश्न है कि क्या हम ऐसी कोई सुरंग बना सकते हैं? इसका उत्तर है नहीं। इसके कई कारण हैं।सबसे पहला तो ये कि पृथ्वी के हम जितना अंदर जाते हैं वो उतनी ही गर्म होती जाती है। इसके अन्तर्भाग (कोर) में तो तापमान हज़ारो डिग्री सेल्सियस पहुँच जाता है। ऐसे में ना ही इन्सान ना ही इन्सान की बनाई कोई मशीन इतने ज्यादा तापमान में जा सकती है।दूसरा एक कारण ये भी है कि पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक की सुरंग बनाने में हमें १२,८०० किलोमीटर खुदाई करनी होगी। अब तक की सबसे गहरी सुरंग रूस में कोला अति-गहन वेधन छिद्र है। ये करीब ९ इंच चौड़ा है और १२ किलोमीटर गहरी। लेकिन पृथ्वी के एक छोर से दूसरे के लिए हज़ारों किलोमीटर खुदाई करनी होगी।अब मान लेते हैं कि हम इतनी गहरी खुदाई कर भी लेते हैं किसी तरह। एक सामान्य मनुष्य करीब ४ मीटर वर्ग (मीटर स्क्वायर) का क्षेत्र लेता है (जमीन पर)। और इस क्षेत्र की अगर हम १२,८०० किलोमीटर गहरी सुरंग बनाएंगे तो कुछ आयतन होगा ५,१२,००,००० (५ करोड़ १२ लाख) मीटर घन (मीटर क्यूब)। अब इतनी सारी मिटटी (जिसमें खूब सारा लावा भी है) कहाँ रखी जाएगी? ये भी एक समस्या है।इसलिए ऐसा कर पाना बिलकुल भी आसान नहीं है और फिलहाल तो असंभव है। बाकी अगर आप ऐसा कर पाए तो दूसरे छोर में भी आसमान और अंतरिक्ष देख पाएंगे। इसमें कोई दोराय नहीं है।धन्यवाद !

पृथ्वी ब्रह्मांड में एक गोल पिंड की तरह है, तो क्या यदि हम इसे खोदकर इसके अंतिम छोड़ तक चले जाते हैं तो क्या हम अंतरिक्ष को देख पायेंगे? क्या ऐसा करना आसान है? By वनिता कासनियां पंजाब? अंतरिक्ष देखने के लिए हमें इतनी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है। बस रात में सर ऊपर कर के आसमान देख लीजिए। वही अंतरिक्ष है। नुब्रा घाटी, कश्मीर लेकिन, पृथ्वी के एक छोर से दूसरे तक का गड्ढा (सुरंग) बनाना १२वीं में भौतिकी के एक सवाल की याद दिलाता है। सवाल था: अगर हम पृथ्वी में एक छोर से दूसरे तक एक सुरंग बनाये और फिर उसमें कूदें तो क्या होगा? देखने में लगेगा कि ये प्रश्न बहुत आसान है। एक छोर से कूदेंगे तो दूसरे छोर से निकल आएँगे। क्या ही बड़ी बात है इस प्रश्न में? लेकिन दोस्त भौतिकी में यही बात तो ख़ास है कि कई बार जो हम सोचते हैं वो जरूरी नहीं असल जिंदगी में हो। अगर हम इस प्रश्न के समीकरण हल करें तो पायेंगे कि हम दूसरी छोर से नहीं निकलेंगे बल्कि पृथ्वी के अंदर ही एक छोर से दूसरे छोर का चक्कर लगाते रहेंगे। कभी ऊपर से नीचे तो कभी नीचे से ऊपर। हम इस सरल आवर्त गति (simple harmonic motion) में हमेशा के लिए...

आकाशगंगा का एक चित्रण By वनिता कासनियां पंजाब सौर मंडल में डार्क मैटर को कैसे मापा जा सकता हैआकाशगंगा के चित्र केंद्र से बाहर निकलने वाले सर्पिल पैटर्न में व्यवस्थित अरबों सितारों को दिखाते हैं, बीच में प्रबुद्ध गैस के साथ। लेकिन हमारी आंखें केवल उस सतह को देख सकती हैं जो हमारी आकाशगंगा को एक साथ रखती है। हमारी आकाशगंगा के द्रव्यमान का लगभग 95 प्रतिशत भाग अदृश्य है और प्रकाश के साथ परस्पर क्रिया नहीं करता है। यह डार्क मैटर नामक एक रहस्यमय पदार्थ से बना है, जिसे कभी सीधे मापा नहीं गया।अब, एक नया अध्ययन गणना करता है कि अंतरिक्ष यान और दूर के धूमकेतु सहित हमारे सौर मंडल में डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण वस्तुओं को कैसे प्रभावित करता है। यह एक तरीका भी प्रस्तावित करता है कि भविष्य के प्रयोग के साथ डार्क मैटर के प्रभाव को सीधे देखा जा सकता है। लेख रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के मासिक नोटिस में प्रकाशित हुआ है ।.नासा के मुख्य वैज्ञानिक कार्यालय के सह-लेखक और सलाहकार जिम ग्रीन ने कहा, "हम भविष्यवाणी कर रहे हैं कि यदि आप सौर मंडल में काफी दूर निकलते हैं, तो आपके पास वास्तव में डार्क मैटर फोर्स को मापने का अवसर है।" "यह कैसे करना है और हम इसे कहाँ करेंगे, इसका पहला विचार है।"हमारे पिछवाड़े में काला पदार्थयहाँ पृथ्वी पर, हमारे ग्रह का गुरुत्वाकर्षण हमें हमारी कुर्सियों से उड़ने से रोकता है, और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण हमारे ग्रह को 365-दिनों के समय पर परिक्रमा करता रहता है। लेकिन एक अंतरिक्ष यान सूर्य से जितना दूर उड़ता है, वह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण को उतना ही कम महसूस करता है, और जितना अधिक वह गुरुत्वाकर्षण का एक अलग स्रोत महसूस करता है: वह आकाशगंगा के बाकी हिस्सों से आता है, जो कि ज्यादातर डार्क मैटर होता है। हमारी आकाशगंगा के 100 अरब तारों का द्रव्यमान आकाशगंगा के डार्क मैटर सामग्री के अनुमानों की तुलना में बहुत कम है।सौर मंडल में डार्क मैटर के प्रभाव को समझने के लिए, प्रमुख अध्ययन लेखक एडवर्ड बेलब्रुनो ने "गैलेक्टिक फोर्स" की गणना की, जो सामान्य पदार्थ के समग्र गुरुत्वाकर्षण बल को संपूर्ण आकाशगंगा से डार्क मैटर के साथ मिलाता है। उन्होंने पाया कि सौर मंडल में, इस बल का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा डार्क मैटर से है और 55 प्रतिशत सामान्य, तथाकथित "बैरोनिक मैटर" से है। यह सौर मंडल में डार्क मैटर के द्रव्यमान और सामान्य पदार्थ के बीच लगभग आधा-आधा विभाजन का सुझाव देता है।प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और येशिवा यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ और खगोल भौतिकीविद् बेलब्रुनो ने कहा, "हमारे सौर मंडल में महसूस किए गए डार्क मैटर के कारण सामान्य पदार्थ के कारण बल की तुलना में गैलेक्टिक बल के अपेक्षाकृत छोटे योगदान से मैं थोड़ा हैरान था।" "यह इस तथ्य से समझाया गया है कि अधिकांश डार्क मैटर हमारी आकाशगंगा के बाहरी हिस्सों में है, जो हमारे सौर मंडल से बहुत दूर है।"एक बड़ा क्षेत्र जिसे डार्क मैटर का "हेलो" कहा जाता है, मिल्की वे को घेरता है और आकाशगंगा के डार्क मैटर की सबसे बड़ी सांद्रता का प्रतिनिधित्व करता है। प्रभामंडल में बहुत कम या कोई सामान्य मामला नहीं है। यदि सौर मंडल आकाशगंगा के केंद्र से अधिक दूरी पर स्थित होता, तो यह गांगेय बल में काले पदार्थ के बड़े अनुपात के प्रभाव को महसूस करेगा क्योंकि यह डार्क मैटर प्रभामंडल के करीब होगा, लेखकों ने कहा।वोयाजर 1 और कक्षाओं के साथ सौर मंडलइस कलाकार की अवधारणा में, नासा के वोयाजर 1 अंतरिक्ष यान में सौर मंडल का एक विहंगम दृश्य है। मंडल प्रमुख बाहरी ग्रहों की कक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं: बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून। 1977 में लॉन्च किया गया, वोयाजर 1 ने बृहस्पति और शनि ग्रहों का दौरा किया। अंतरिक्ष यान अब पृथ्वी से 14 बिलियन मील से अधिक दूर है, जिससे यह अब तक का सबसे दूर मानव निर्मित वस्तु बन गया है। वास्तव में, वोयाजर 1 अब इंटरस्टेलर स्पेस के माध्यम से ज़ूम कर रहा है, सितारों के बीच का क्षेत्र जो गैस, धूल और मरने वाले सितारों से पुनर्नवीनीकरण सामग्री से भरा हुआ है।श्रेय: NASA, ESA, और G. बेकन (STScI)डार्क मैटर अंतरिक्ष यान को कैसे प्रभावित कर सकता हैनए अध्ययन के अनुसार, ग्रीन और बेलब्रूनो का अनुमान है कि डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण सभी अंतरिक्ष यान के साथ इतना कम इंटरैक्ट करता है कि नासा ने सौर मंडल से बाहर जाने वाले रास्तों पर भेजा है।“If spacecraft move through the dark matter long enough, their trajectories are changed, and this is important to take into consideration for mission planning for certain future missions,” Belbruno said.Such spacecraft may include the retired Pioneer 10 and 11 probes that launched in 1972 and 1973, respectively; the Voyager 1 and 2 probes that have been exploring for more than 40 years and have entered interstellar space; and the New Horizons spacecraft that has flown by Pluto and Arrokoth in the Kuiper Belt.But it’s a tiny effect. After traveling billions of miles, the path of a spacecraft like Pioneer 10 would only deviate by about 5 feet (1.6 meters) due to the influence of dark matter. “They do feel the effect of dark matter, but it’s so small, we can’t measure it,” Green said. Where does the galactic force take over?At a certain distance from the Sun, the galactic force becomes more powerful than the pull of the Sun, which is made of normal matter. Belbruno and Green calculated that this transition happens at around 30,000 astronomical units, or 30,000 times the distance from Earth to the Sun. That is well beyond the distance of Pluto, but still inside the Oort Cloud, a swarm of millions of comets that surrounds the solar system and extends out to 100,000 astronomical units.This means that dark matter’s gravity could have played a role in the trajectory of objects like ‘Oumuamua, the cigar-shaped comet or asteroid that came from another star system and passed through the inner solar system in 2017. Its unusually fast speed could be explained by dark matter’s gravity pushing on it for millions of years, the authors say.If there is a giant planet in the outer reaches of the solar system, a hypothetical object called Planet 9 or Planet X that scientists have been searching for in recent years, dark matter would also influence its orbit. If this planet exists, dark matter could perhaps even push it away from the area where scientists are currently looking for it, Green and Belbruno write. Dark matter may have also caused some of the Oort Cloud comets to escape the orbit of the Sun altogether.Could dark matter’s gravity be measured?To measure the effects of dark matter in the solar system, a spacecraft wouldn’t necessarily have to travel that far. At a distance of 100 astronomical units, a spacecraft with the right experiment could help astronomers measure the influence of dark matter directly, Green and Belbruno said.Specifically, a spacecraft equipped with radioisotope power, a technology that has allowed Pioneer 10 and 11, the Voyagers, and New Horizon to fly very far from the Sun, may be able to make this measurement. Such a spacecraft could carry a reflective ball and drop it at an appropriate distance. The ball would feel only galactic forces, while the spacecraft would experience a thermal force from the decaying radioactive element in its power system, in addition to the galactic forces. Subtracting out the thermal force, researchers could then look at how the galactic force relates to deviations in the respective trajectories of the ball and the spacecraft. Those deviations would be measured with a laser as the two objects fly parallel to one another.A proposed mission concept called Interstellar Probe, which aims to travel to about 500 astronomical units from the Sun to explore that uncharted environment, is one possibility for such an experiment.आकाशगंगा समूह की दो हबल छवियां Cl 0024+17 (ZwCl 0024+1652), डार्क मैटर को चित्रित करने के लिए सही छवि के साथ छायांकितTwo views from Hubble of the massive galaxy cluster Cl 0024+17 (ZwCl 0024+1652) are shown. To the left is the view in visible-light with odd-looking blue arcs appearing among the yellowish galaxies. These are the magnified and distorted images of galaxies located far behind the cluster. Their light is bent and amplified by the immense gravity of the cluster in a process called gravitational lensing. To the right, a blue shading has been added to indicate the location of invisible material called dark matter that is mathematically required to account for the nature and placement of the gravitationally lensed galaxies that are seen.Credits: NASA, ESA, M.J. Jee and H. Ford (Johns Hopkins University)More about dark matterDark matter as a hidden mass in galaxies was first proposed in the 1930s by Fritz Zwicky. But the idea remained controversial until the 1960s and 1970s, when Vera C. Rubin and colleagues confirmed that the motions of stars around their galactic centers would not follow the laws of physics if only normal matter were involved. Only a gigantic hidden source of mass can explain why stars at the outskirts of spiral galaxies like ours move as quickly as they do.Today, the nature of dark matter is one of the biggest mysteries in all of astrophysics. Powerful observatories like the Hubble Space Telescope and the Chandra X-Ray Observatory have helped scientists begin to understand the influence and distribution of dark matter in the universe at large. Hubble has explored many galaxies whose dark matter contributes to an effect called “lensing,” where gravity bends space itself and magnifies images of more distant galaxies.Astronomers will learn more about dark matter in the cosmos with the newest set of state-of-the-art telescopes. NASA’s James Webb Space Telescope, which launched Dec. 25, 2021, will contribute to our understanding of dark matter by taking images and other data of galaxies and observing their lensing effects. NASA’s Nancy Grace Roman Space Telescope, set to launch in the mid-2020s, will conduct surveys of more than a billion galaxies to look at the influence of dark matter on their shapes and distributions.The European Space Agency’s forthcoming Euclid mission, which has a NASA contribution, will also target dark matter and dark energy, looking back in time about 10 billion years to a period when dark energy began hastening the universe’s expansion. And the Vera C. Rubin Observatory, a collaboration of the National Science Foundation, the Department of Energy, and others, which is under construction in Chile, will add valuable data to this puzzle of dark matter’s true essence.But these powerful tools are designed to look for dark matter’s strong effects across large distances, and much farther afield than in our solar system, where dark matter’s influence is so much weaker.“If you could send a spacecraft out there to detect it, that would be a huge discovery,” Belbruno said.एलिजाबेथ लैंडौ द्वारानासा मुख्यालयvnitakasniapunjab05114@gmail.comअंतिम अद्यतन: फ़रवरी 4, 2022संपादक: एलिजाबेथ लैंडौनासाराष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासननासा अधिकारी: ब्रायन डनबारvnitakasniapunjab05114@gmail.comमvnitakasniapunjab05114@gmail.comसौर मंडल में डार्क मैटर के प्रभाव को समझने के लिए, प्रमुख अध्ययन लेखक एडवर्ड बेलब्रुनो ने "गैलेक्टिक फोर्स" की गणना की, जो सामान्य पदार्थ के समग्र गुरुत्वाकर्षण बल को संपूर्ण आकाशगंगा से डार्क मैटर के साथ मिलाता है। उन्होंने पाया कि सौर मंडल में, इस बल का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा डार्क मैटर से है और 55 प्रतिशत सामान्य, तथाकथित "बैरोनिक मैटर" से है। यह सौर मंडल में डार्क मैटर के द्रव्यमान और सामान्य पदार्थ के बीच लगभग आधा-आधा विभाजन का सुझाव देता है।प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और येशिवा यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ और खगोल भौतिकीविद् बेलब्रुनो ने कहा, "हमारे सौर मंडल में महसूस किए गए डार्क मैटर के कारण सामान्य पदार्थ के कारण बल की तुलना में गैलेक्टिक बल के अपेक्षाकृत छोटे योगदान से मैं थोड़ा हैरान था।" "यह इस तथ्य से समझाया गया है कि अधिकांश डार्क मैटर हमारी आकाशगंगा के बाहरी हिस्सों में है, जो हमारे सौर मंडल से बहुत दूर है।"एक बड़ा क्षेत्र जिसे डार्क मैटर का "हेलो" कहा जाता है, मिल्की वे को घेरता है और आकाशगंगा के डार्क मैटर की सबसे बड़ी सांद्रता का प्रतिनिधित्व करता है। प्रभामंडल में बहुत कम या कोई सामान्य मामला नहीं है। यदि सौर मंडल आकाशगंगा के केंद्र से अधिक दूरी पर स्थित होता, तो यह गांगेय बल में काले पदार्थ के बड़े अनुपात के प्रभाव को महसूस करेगा क्योंकि यह डार्क मैटर प्रभामंडल के करीब होगा, लेखकों ने कहा।वोयाजर 1 और कक्षाओं के साथ सौर मंडलइस कलाकार की अवधारणा में, नासा के वोयाजर 1 अंतरिक्ष यान में सौर मंडल का एक विहंगम दृश्य है। मंडल प्रमुख बाहरी ग्रहों की कक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं: बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून। 1977 में लॉन्च किया गया, वोयाजर 1 ने बृहस्पति और शनि ग्रहों का दौरा किया। अंतरिक्ष यान अब पृथ्वी से 14 बिलियन मील से अधिक दूर है, जिससे यह अब तक का सबसे दूर मानव निर्मित वस्तु बन गया है। वास्तव में, वोयाजर 1 अब इंटरस्टेलर स्पेस के माध्यम से ज़ूम कर रहा है, सितारों के बीच का क्षेत्र जो गैस, धूल और मरने वाले सितारों से पुनर्नवीनीकरण सामग्री से भरा हुआ है।श्रेय: NASA, ESA, और G. बेकन (STScI)डार्क मैटर अंतरिक्ष यान को कैसे प्रभावित कर सकता हैनए अध्ययन के अनुसार, ग्रीन और बेलब्रूनो का अनुमान है कि डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण सभी अंतरिक्ष यान के साथ इतना कम इंटरैक्ट करता है कि नासा ने सौर मंडल से बाहर जाने वाले रास्तों पर भेजा है।बेलब्रुनो ने कहा, "यदि अंतरिक्ष यान लंबे समय तक काले पदार्थ से गुजरता है, तो उनके प्रक्षेपवक्र बदल जाते हैं, और भविष्य के कुछ मिशनों के लिए मिशन योजना को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है।"ऐसे अंतरिक्ष यान में सेवानिवृत्त पायनियर 10 और 11 प्रोब शामिल हो सकते हैं जो क्रमशः 1972 और 1973 में लॉन्च किए गए थे; वोयाजर 1 और 2 प्रोब जो 40 से अधिक वर्षों से खोज कर रहे हैं और इंटरस्टेलर स्पेस में प्रवेश कर चुके हैं; और न्यू होराइजन्स अंतरिक्ष यान जो कुइपर बेल्ट में प्लूटो और अरोकोथ द्वारा उड़ाया गया है।लेकिन यह एक छोटा सा प्रभाव है। अरबों मील की यात्रा करने के बाद, पायनियर 10 जैसे अंतरिक्ष यान का मार्ग डार्क मैटर के प्रभाव के कारण केवल 5 फीट (1.6 मीटर) ही विचलित होगा। "वे डार्क मैटर के प्रभाव को महसूस करते हैं, लेकिन यह इतना छोटा है, हम इसे माप नहीं सकते," ग्रीन ने कहा। गांगेय बल कहाँ ले जाता है?सूर्य से एक निश्चित दूरी पर, सामान्य पदार्थ से बने सूर्य के खिंचाव से गांगेय बल अधिक शक्तिशाली हो जाता है। बेलब्रुनो और ग्रीन ने गणना की कि यह संक्रमण लगभग 30,000 खगोलीय इकाइयों में होता है, या पृथ्वी से सूर्य की दूरी का 30,000 गुना होता है। यह प्लूटो की दूरी से काफी दूर है, लेकिन अभी भी ऊर्ट क्लाउड के अंदर, लाखों धूमकेतुओं का झुंड है जो सौर मंडल को घेरे हुए है और 100,000 खगोलीय इकाइयों तक फैला हुआ है।इसका मतलब यह है कि डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण 'ओउमुआमुआ' , सिगार के आकार का धूमकेतु या क्षुद्रग्रह जैसी वस्तुओं के प्रक्षेपवक्र में एक भूमिका निभा सकता है जो किसी अन्य स्टार सिस्टम से आया और 2017 में आंतरिक सौर मंडल से गुजरा। इसकी असामान्य रूप से तेज गति को समझाया जा सकता है। लेखकों का कहना है कि डार्क मैटर के गुरुत्वाकर्षण द्वारा उस पर लाखों वर्षों से दबाव डाला जा रहा है।यदि सौर मंडल की बाहरी पहुंच में एक विशाल ग्रह है, एक काल्पनिक वस्तु जिसे ग्रह 9 या ग्रह एक्स कहा जाता है जिसे वैज्ञानिक हाल के वर्षों में खोज रहे हैं, तो डार्क मैटर भी इसकी कक्षा को प्रभावित करेगा। यदि यह ग्रह मौजूद है, तो डार्क मैटर शायद इसे उस क्षेत्र से दूर भी धकेल सकता है जहां वैज्ञानिक वर्तमान में इसकी तलाश कर रहे हैं, ग्रीन और बेलब्रुनो लिखते हैं। डार्क मैटर के कारण कुछ ऊर्ट क्लाउड धूमकेतु भी सूर्य की कक्षा से पूरी तरह से बच गए।क्या डार्क मैटर के गुरुत्वाकर्षण को मापा जा सकता है?सौर मंडल में डार्क मैटर के प्रभावों को मापने के लिए, किसी अंतरिक्ष यान को इतनी दूर यात्रा करने की आवश्यकता नहीं होगी। ग्रीन और बेलब्रुनो ने कहा कि 100 खगोलीय इकाइयों की दूरी पर, सही प्रयोग वाला एक अंतरिक्ष यान खगोलविदों को सीधे काले पदार्थ के प्रभाव को मापने में मदद कर सकता है।विशेष रूप से, रेडियोआइसोटोप शक्ति से लैस एक अंतरिक्ष यान, एक ऐसी तकनीक जिसने पायनियर 10 और 11, वोयाजर्स और न्यू होराइजन को सूर्य से बहुत दूर उड़ान भरने की अनुमति दी है, यह माप करने में सक्षम हो सकती है। ऐसा अंतरिक्ष यान एक परावर्तक गेंद ले जा सकता है और उसे उचित दूरी पर गिरा सकता है। गेंद केवल गांगेय बलों को महसूस करेगी, जबकि अंतरिक्ष यान को गांगेय बलों के अलावा, अपनी शक्ति प्रणाली में क्षयकारी रेडियोधर्मी तत्व से एक थर्मल बल का अनुभव होगा। थर्मल बल को घटाकर, शोधकर्ता तब देख सकते थे कि गैलेक्टिक बल गेंद और अंतरिक्ष यान के संबंधित प्रक्षेपवक्र में विचलन से कैसे संबंधित है। उन विचलनों को लेजर से मापा जाएगा क्योंकि दो वस्तुएं एक दूसरे के समानांतर उड़ती हैं।इंटरस्टेलर प्रोब नामक एक प्रस्तावित मिशन अवधारणा, जिसका उद्देश्य उस अज्ञात वातावरण का पता लगाने के लिए सूर्य से लगभग 500 खगोलीय इकाइयों की यात्रा करना है, इस तरह के प्रयोग की एक संभावना है।आकाशगंगा समूह की दो हबल छवियां Cl 0024+17 (ZwCl 0024+1652), डार्क मैटर को चित्रित करने के लिए सही छवि के साथ छायांकितविशाल आकाशगंगा समूह Cl 0024+17 (ZwCl 0024+1652) के हबल से दो दृश्य दिखाए गए हैं। बाईं ओर पीले रंग की आकाशगंगाओं के बीच दिखाई देने वाले अजीब दिखने वाले नीले चाप के साथ दृश्य-प्रकाश में दृश्य है। ये क्लस्टर के बहुत पीछे स्थित आकाशगंगाओं के आवर्धित और विकृत चित्र हैं। गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग नामक प्रक्रिया में क्लस्टर के अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण द्वारा उनका प्रकाश मुड़ा हुआ और प्रवर्धित होता है। दाईं ओर, डार्क मैटर नामक अदृश्य सामग्री के स्थान को इंगित करने के लिए एक नीला छायांकन जोड़ा गया है, जिसे गणितीय रूप से गुरुत्वाकर्षण लेंस वाली आकाशगंगाओं की प्रकृति और स्थान के लिए जिम्मेदार माना जाता है।श्रेय: NASA, ESA, एमजे जी और एच. फोर्ड (जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय)डार्क मैटर के बारे में अधिक जानकारीआकाशगंगाओं में छिपे हुए द्रव्यमान के रूप में डार्क मैटर को पहली बार 1930 के दशक में फ़्रिट्ज़ ज़्विकी द्वारा प्रस्तावित किया गया था। लेकिन यह विचार 1960 और 1970 के दशक तक विवादास्पद रहा, जब वेरा सी. रुबिन और उनके सहयोगियों ने पुष्टि की कि उनके गैलेक्टिक केंद्रों के चारों ओर सितारों की गति भौतिकी के नियमों का पालन नहीं करेगी यदि केवल सामान्य पदार्थ शामिल हों। द्रव्यमान का केवल एक विशाल छिपा हुआ स्रोत ही बता सकता है कि हमारी जैसी सर्पिल आकाशगंगाओं के बाहरी इलाके में तारे जितनी तेज़ी से चलते हैं, उतनी तेज़ी से क्यों चलते हैं।आज, डार्क मैटर की प्रकृति सभी खगोल भौतिकी में सबसे बड़े रहस्यों में से एक है। हबल स्पेस टेलीस्कोप और चंद्रा एक्स-रे वेधशाला जैसी शक्तिशाली वेधशालाओं ने वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर डार्क मैटर के प्रभाव और वितरण को समझने में मदद की है। हबल ने कई आकाशगंगाओं का पता लगाया है जिनके काले पदार्थ " लेंसिंग " नामक प्रभाव में योगदान करते हैं , जहां गुरुत्वाकर्षण स्वयं अंतरिक्ष को झुकाता है और अधिक दूर की आकाशगंगाओं की छवियों को बढ़ाता है।अत्याधुनिक दूरबीनों के नवीनतम सेट के साथ खगोलविद ब्रह्मांड में काले पदार्थ के बारे में अधिक जानेंगे। नासा का जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप , जिसने 25 दिसंबर, 2021 को लॉन्च किया, आकाशगंगाओं के चित्र और अन्य डेटा लेकर और उनके लेंसिंग प्रभावों को देखकर डार्क मैटर की हमारी समझ में योगदान देगा। नासा की नैन्सी ग्रेस रोमन स्पेस टेलीस्कोप , जो 2020 के मध्य में लॉन्च होने के लिए तैयार है, एक अरब से अधिक आकाशगंगाओं का सर्वेक्षण करेगी ताकि उनके आकार और वितरण पर डार्क मैटर के प्रभाव को देखा जा सके।यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का आगामी यूक्लिड मिशन, जिसमें नासा का योगदान है, डार्क मैटर और डार्क एनर्जी को भी लक्षित करेगा, जो लगभग 10 अरब साल की अवधि में वापस देख रहा है जब डार्क एनर्जी ने ब्रह्मांड के विस्तार को तेज करना शुरू कर दिया था। और वेरा सी. रुबिन ऑब्जर्वेटरी, नेशनल साइंस फाउंडेशन, ऊर्जा विभाग, और अन्य का सहयोग, जो चिली में निर्माणाधीन है, डार्क मैटर के असली सार की इस पहेली में मूल्यवान डेटा जोड़ देगा।लेकिन इन शक्तिशाली उपकरणों को डार्क मैटर के मजबूत प्रभावों को बड़ी दूरी पर देखने के लिए डिज़ाइन किया गया है, और हमारे सौर मंडल की तुलना में बहुत दूर है, जहां डार्क मैटर का प्रभाव इतना कमजोर है।"यदि आप इसका पता लगाने के लिए एक अंतरिक्ष यान भेज सकते हैं, तो यह एक बहुत बड़ी खोज होगी," बेलब्रुनो ने कहा।एलिजाबेथ लैंडौ द्वारानासा मुख्यालय

By वनिता कासनियां पंजाब सौर मंडल में डार्क मैटर को कैसे मापा जा सकता है आकाशगंगा के चित्र केंद्र से बाहर निकलने वाले सर्पिल पैटर्न में व्यवस्थित अरबों सितारों को दिखाते हैं, बीच में प्रबुद्ध गैस के साथ।  लेकिन हमारी आंखें केवल उस सतह को देख सकती हैं जो हमारी आकाशगंगा को एक साथ रखती है।  हमारी आकाशगंगा के द्रव्यमान का लगभग 95 प्रतिशत भाग अदृश्य है और प्रकाश के साथ परस्पर क्रिया नहीं करता है।  यह डार्क मैटर नामक एक रहस्यमय पदार्थ से बना है, जिसे कभी सीधे मापा नहीं गया। अब, एक नया अध्ययन गणना करता है कि अंतरिक्ष यान और दूर के धूमकेतु सहित हमारे सौर मंडल में डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण वस्तुओं को कैसे प्रभावित करता है।  यह एक तरीका भी प्रस्तावित करता है कि भविष्य के प्रयोग के साथ डार्क मैटर के प्रभाव को सीधे देखा जा सकता है।  लेख  रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के मासिक नोटिस में प्रकाशित हुआ है  । . नासा के मुख्य वैज्ञानिक कार्यालय के सह-लेखक और सलाहकार जिम ग्रीन ने कहा, "हम भविष्यवाणी कर रहे हैं कि यदि आप सौर मंडल में काफी दूर निकलते हैं, तो आपके पास वास्तव ...